Book Title: Sadhu Pratikramanadi Sutrani
Author(s): Jagjivan Jivraj Kothari, 
Publisher: Jagjivan Jivraj Kothari

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Page 86
________________ सूत्र साधुसाध्वी है एहनो करो विचार । कांता वचन सुणी मन हरखी, हियडे हर्ष अपार ॥ चक्रवर्ती तीर्थकर होसी, स्वप्न तणे अहिनाण ॥ एहवो है ॥४२॥ अर्थ कह्यो तब राजा, किनो वचन प्रमाण ॥ ६ ॥ ढाल । हिवे, सुख भोगवंतां, जब बोल्या नव मास । पोष वदी दशमी, जन्म हुवो | श्रीपास ॥ छपन दिशी कुमरी, दशों दिशांथी आवे । सूतिकर्म करीने, बैठी मंगल गावे ॥ उलालो ॥ केई गावंती केई नाचती, केई बजावे ताल । कड भीडंती मुख भोलंती, नाटक करे रसाल ।। धमधम दोय दोय मादल वाजे, गाजे गहर गंभीर । देव कुमरी नाटक तिहां मांड्यो, पाप तिमिर भाजंत ।। ७ ।। ढाल | हिवे नाटक कीधो, जन्म तणो फल लीध । नंदीश्वर द्वीपे, अट्ठाही | महोत्सव कीध ॥ तिहाथी तेह चाली, पहुंती निय निय ठाम । निजठामे बैठी, करती प्रभु गुण ग्राम ॥ उलालो ॥ तिण अवसरे | इन्द्रासन कंप्यो, जीम पीपल तरु पान । कोपकरी इन्द्र अविलोकत, देवे अवधि ज्ञान ॥ पास जिनेश्वर जन्मा जाणी, हिवडे आणी | भावे । हरिणेगमेषी ततक्षिण तेडावे, घंटा सुघोपा वजावे ॥८॥ ढाल।। हिवे तेह वजावे, सुणियो सयल विमाने। सहु सुरपति मिलतां, | भुवनपति इन्द्र वीश ॥ दशकल्पतणा इन्द्र, व्यंतर इन्द्र वतीश ॥ उलालो। इन्द्र बतीशे व्यंतरकेरा, वली सूरजने चंद्र । चौसठ इन्द्र इणीपरे मिलीया, अमरांना बहुबूंद ॥ जिनवर जननी पासे आयने, भावे वंदन कीधो । अवस्वापिणी निद्रातिहां दिनी, जिनवर गोदे लीधो ॥९॥ ढाल ॥ पांचरूप करी इन्द्र, जिनवर गोद लहंत । एक छत्र धरंतो, चामर दोय बिजंत ।। एक दंड उलाले, वली जिन मुख 3 |पेखंत । इम हर्ष धरता, इणपरे सुर विचरंत ॥ उलालो ।। हर्ष धरंतां सुरपति पहुंता, पहुंचा मेरु श्रृंग । जन्म महोच्छव विधिसुद कीनो, पाम्या परमानंद ।। जिनवर जिननी पासे मेली, सुर नंदीश्वर जावे । हरख धरी माता हुलरावे, पास कुमर दियो नामे ॥१०॥ ढाल ॥ हिवे जिनवर वाधे, जिम द्वितीयाको चंद । सहु रामत रमतां, साथे नरवर बंद ।। जोवन जब आया, परणावे निज ताह ।। ARCANERALSCREGALA ॥४२॥ Jan Education International For Personal & Private Use Only www.iminelib yong

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