Book Title: Sadhu Pratikramanadi Sutrani
Author(s): Jagjivan Jivraj Kothari,
Publisher: Jagjivan Jivraj Kothari
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तपगच्छीय देवसिक तथा सत्रिक अतिचार ॥ . ठाणे कमणे, चंकमणे, आऊत्ते, अणाऊत्ते, हरियकाय संघट्टे, बीयकाय संघट्टे, सकाय संघट्ट, थावरकाय संघट्टे, छप्पई संघट्टे. ठाणाओठाणं संकामीया, देहरे गोचरी बाहीरभूमि मार्गे जातां आवतां स्त्री तीर्यचतगा संघट्ट परिताप उपद्रव हुआ, दिवस मांहि चार बार सझायः सात बार चैत्यवंदन कीधा नहीं, प्रतिले वणा आधी पाछी भणावी, अस्ताव्यस्त कीधी, आतध्यान रद्रौध्यान ध्यायां, धर्मध्यान शुक्लध्यान ध्यायां नहीं, गोचरीतगा बेंतालिस दोष उपजता जोया नहीं, पांच दोष मंडळितणा टाल्या नहीं,
मात्रु अणपुंजे लीधुं, अणपूंजी भूमिकाए परठव्युं, देहरा उपाश्रय मांहि पेसतां निसरतां निसिही आवस्सही कहेवी विसारी, जिन* भुवनें चोराशी आशातना, गुरु प्रतें तेत्रिश आशातना, अनेरं जे काइ दिवस संबंधी पापदोप लाग्युं होय ते सवि हुं मने वचने कायाए करीने तस्स मिच्छामि दुकडं ॥ इति ॥ देवसिक अतिचार ।।
संथाराऊवट्टणकी, परियट्टणकी, आऊंटणकी, पसारणकी, छप्पइय संघट्टणकी, अचक्खु विसय हुओ, संथारो ऊत्तरपट्टो टाली3 * अधिकुं उपगरण घाल्युं, अणपडिलेहयुं हलाव्युं, मात्र्युं अणपडिलेहयुं लीधुं, अणपुंजी भूमिए परठव्युं, परठवतां अणुजाणह जस्सुग्गहो
कीधो नहीं, परठव्या पूंठे वार त्रण वोसिरे वोसिरे कीधुं नहीं, संथरापोरसी भणवी विसारी, पोरसी भणाव्या विना मुता, कुस्वम
लाधु, सुपनांतरमांहि शीळनी विराधना हुइ, आहट्ट दोहट्ट चितुव्युं, संकल्प विकल्प कीधो, रात्रीसंबंधीओ जे कोइ अतिचार * लाग्यो होय, ते सवि हुँ मने वचने कायाए करी तस्स मिच्छामि दुकडं. ॥ इति ॥ रात्रिक अतिचार ॥
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