Book Title: Sadhu Pratikramanadi Sutrani
Author(s): Jagjivan Jivraj Kothari,
Publisher: Jagjivan Jivraj Kothari
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प्रतिक्रमण
साधुसावा है पास । भवियण करी पूरवे आस ॥ तास वर्ष रह्या घर वास । सयम लियो मन हुल्लास ।। श्री पास जिनजीरे जी ॥ १ ॥ ढाल ॥
प्रभावती भरतार नित नित वंदियेरे । बामा मात मल्हार ॥ चिर आनंदियेरे । पाशवदी एकादशीरे । शुभ मनोरथ सुभवार । संयम ॥४३॥
लियो जिनवरूरे। तीन सया परिवार ॥ उलालो ॥ संयम लियो पास कुमार । देश विदेश करत विहार ॥ कर्म शत्रुजन जीतन काज । वडतले काउसग्ग रह्या जिनराज ॥ श्री पास जिनगीरे जी ॥ २ ॥ ढाल || हिवे मेघमाली देवतारे । वैर संभारियो आय ।। गगन धडुके मेहलोरे । आभे बीज नहीं माय । उलालो ।। आभे बीज झलके सार । मेह वरसावे मुसल धार ।। जिनवर काउसग्ग | रह्या तिणवार । जलधर वरसे अपरंपार ।। श्री पास० ॥ ३ ॥ ढाल ॥ नासां ताइ पाणी चढ्योरे, जिनवर ध्यान न चूक ॥ रूप करे Pवैतालनारे । तो पण ध्यान न मूक ।। उलालो ॥ ध्यान न मुके पास जिनेश्वर । हिवे आयो धरणेंद्र सुरेश्वर ।। कमठासुर मन मांही 8 बीये । पास चरणांरी सेवा लहिये ॥ श्री पास ॥ ४ ॥ ढाल ॥ मेह वरसंतो रहे नहींरे । हिवे सांभलो विरतंत ॥ धरणेंद्र ज्ञान उपर्युझीयोरे । ये कमठासुर दैत्य ॥ उलालो ॥ ये कपठासुर देत्य पछाडं । स्वर्ग भुवनथी वाहिर काहुँ । कमठासुर जिन पायलागो ।
पास जिनेश्वर सरण राखो ॥ श्री पास ॥ ५॥ ढाल।। प्रकट थइ पाय पड्यारे, सुर पहुंतो निज ठाम ॥ काउसग्ग पारी जिनवरूरे विहार करे गामो गाम ॥ उलालो॥ विहार करे श्री जिनवर पास । भवियण केरी पुरचे आस ॥ चैत्रबादि चौथे दिन जाणो । प्रभुजी | पाम्या केवल ज्ञानो ॥ श्री पास० ॥६॥ढाल।। समवसरण देवां रच्योरे। बैठी परिषदा बार ॥ जलधग्नी परे गाजतारे । वरसे अमृत है धार ॥ उलालो ॥ वरसे अमृत धार समाणो । एवी श्री जिनवरनी वाणी ॥ भविक सुणे मन मांही आणी | एथी लहिये शिव पटराणी ।। श्री पास ॥ ७ ॥ ढाल ॥ गंगाजल समां निर्मलारे । चामर बीजे देव ।। चार निकाय तणा बलिरे । सुरनर सारे
ALSORRENCE
॥४३॥
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