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साधुसाध्वी है और कितनेही दोष आहार दिये बाद हाथ या भाजन धोने वगैरहमें पीछे से पश्चात्कर्ममें लगतेहैं. इसलिये साधु-साध्वियोंको प्रतिक्रमण ॥३९॥ 15 उपयोग सहित पूर्वकर्म व पश्चात्कर्म दोषरहित निर्दोष आहारादि लेना चाहिये। उपयाग सहित
सूत्र र इस प्रकार४२ दोष रहित गौचरी लेनको जाते समय दशवकालिक-आचारांग पिंडनियुक्ति आदि शास्त्रों में बतलाईहुई रीति * प्रमाणे उत्सुकता रहित शांतिसे इरियासमिति सहित आगे पीछे चारोंतरफ उपयोग पूर्वक रस्तामें चले तब किसीके साथ वार्तालाप
वगैरह भाषण न करे और द्रव्यवान व दरिद्रीके घरोंका भेदरहित निर्दोष आहार लेकर गुरुमहाराजके पास उपाश्रयमें आवे तब M“निस्सिही निस्सिही नमो खमासमणाणं, मत्थएण वंदामि" ऐसा कहता हुआ उपाश्रयमें प्रवेश करके गुरुके पासमें आवे और
शक्तिहोवे तबतो गुरुके सामने खडे खडेही थोडाझुककर रजोहरणसे पैर व भूमिकी प्रमार्जना करके दंडेको डावापरकी अंगुलियोंपर | या जमीनपर खडा रखकर हाथमें मुहपाते लेकर खडखडेही खमासमण पूर्वक इरियावही करे ( अथवा शक्तिके अभावमें प्रमार्जनाकी 5 हुई भूमिपर आहारके पात्रं रखकर उपर झोली ढके और पडलें, दंडा वगैरह योग्यस्थाने रखकर खमासमण देकर इरियावही करके) 'तस्सुत्तरी अनत्थ उससिएणं' इत्यादि कह करके काउसग्ग करे उसमें गमनागमन संबंधी दोषोंकी आलोचना करके पीछे जिस जिस घरसे जिस जिस मनुष्यके हाथसे जिसरीतिसे जो जो वस्तु अनुक्रमसे ली होवे वो सर्व उपयोगसे यादकरे जिसमें कदाचित जो कोईदोष लगाहोवे उसको धारण करके 'नमो अरिहंताणं' कहके काउसग्ग पारे, प्रकट लोगस कहे. फिर " इच्छाकारेण संदिसह भगवन् भातपाणी आलोवू" ऐसा साधु कहे तब गुरु कहे “ आलोवेह" ऐसा गुरुका आदेश पाय करके 'इच्छं' कहके जिस रीतिसे काउसग्गमें विचार कियाहाय सो सब गुरुके सामने प्रकट कह देवे, फिर झोलीमेंसे आहारके पात्र बाहिर निकालकर 1४॥३९॥
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और 15
झाली ढके और पडले, हमण पूर्वक इरियावही कर करके दंडेको डावापरकी अंग
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