Book Title: Sadhu Pratikramanadi Sutrani
Author(s): Jagjivan Jivraj Kothari,
Publisher: Jagjivan Jivraj Kothari
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साधुसाध्वी
॥ ९ ॥
जाणिज्जा, तं जहा. अरिहंतसक्खिअं, सिद्धसक्खिअं, साहूसक्खिअं, देवसक्खिअं, अप्पसक्खिअं, एवं हवइ भिक्खू वा, भिक्खुणी वा संजय - विरय- पडिहय-पच्चक्खायपावकम्मे, दिआ वाराओ वा, एगओ वा | परिसागओ वा, सुते वा जागरमाणे वा, एस खलु पाणाइवायस्स वेरमणे हिए, सुहे, खमे. निस्सेसिए, | आणुगामिए, पारगामिए सव्वेसिं पाणाणं, सव्वेसिं भूआणं, सव्वेसिं जीवाणं, सव्वेमिं सत्ताणं, अदुक्खणयाए, असोअणयाए, अजूरणयाए, अतिप्पणयार, अपीडणयाए, अपरिआवणयाए, अणुद्दवणयाए, महत्थे, महागुणे, महाणुभावे, महापुरिसाणुचिन्ने, पर मरिसिदेसिए पसत्थे, तं दुक्खक्खयाए, कम्मक्खयाए, मुख्खयाए, बोहिलाभाए, संसारुतारणाए, तिकट्टु, उवसंपज्जित्ता णं विहरामि, पढमे भंते! महव्व उवडिओ मि मव्वाओ पाणाड़वायाओ वेरमणं ॥ १ ॥
अहावरे दोच्चे भंते! महव्वए मुसावायाओ वेरमणं, सव्वं भंते! मुसावायं पच्चक्खामि, से कोहा वा, लोहा वा, भया वा, हासा वा, नेव सयं मुसं वइज्जा, नेवन्नेहिं मुसं वायाविज्जा, मुसं वयंते वि अन्ने न समणुजाणामि, जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं, मणेणं वायाए कारणं, न करोमि, न कारवेमि, करतं
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प्रतिक्रमण सूत्र.
॥ ९ ॥
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