Book Title: Sadhu Pratikramanadi Sutrani
Author(s): Jagjivan Jivraj Kothari, 
Publisher: Jagjivan Jivraj Kothari

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Page 18
________________ साधुसाध्वी ॥ ८ ॥ या मद्दवं चैव ॥ ३ ॥ लोगम्मि संजया जं करिंति, परमारसि देसियमुआरं । अहमवि उवडिओ तं, महव्वय उच्चारणं काऊं ॥ ४ ॥ से किं तं महव्वय उच्चारणा ? महव्वय उच्चारणा पंचविहा पण्णत्ता, राईभोअण वेरमण छट्टा. तं जहा, सव्वाओ पाणाश्वायाओ वेरमणं ॥ १ ॥ सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं ॥ २ ॥ सव्वाओ अदिन्नादाणाओ वेरमणं ॥ ३ ॥ सव्वाओ मेहुणाओ वेरमणं ॥ ४ ॥ सव्वाओ परिग्गहाओ | वेरमणं ॥ ५ ॥ सव्वाओ राईभोअणाओ वेरणमं ॥ ६ ॥ तत्थ खलु पढगे भंते ! महव्वर पाणाइवायाओ वेरमणं, सव्वं भंते! पाणावायं पच्चक्खामि, से सुहुमं वा, वायरं वा, तसं वा, थावरं वा, नेव सयं पाणे अइवाइजा, नेवन्नेहिं पाणे अइवायाविज्जा, पाणे अइवायंते वि, अन्ने न समणुजाणामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं, न करोमि, न कारवेमि, करतं पि अन्नं न समणुजाणामि, तस्स भंते ! पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि ॥ से पाणावाए चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा - दव्वओ, खितओ, कालओ, भावओ. दव्वओ णं पाणाइवार छसु जीवनिकाएसु, खित्तओ णं पाणाइवाए सव्वलोए, कलाओ णं पाणाइवाए Jain Education International For Personal & Private Use Only प्रतिक्रमण सूत्र || 2 || www.janelibrary.org

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