Book Title: Sadhu Pratikramanadi Sutrani
Author(s): Jagjivan Jivraj Kothari, 
Publisher: Jagjivan Jivraj Kothari

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Page 22
________________ साधुसाध्वी ॥१०॥ COCALCCAX | वा परेहिं समणुन्नाओ तं निंदामि, गरिहाभि, तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं, अईअं निंदामि, || पतिक्रमण पडुपन्नं संवरेमि, अणागयं पञ्चक्खामि. सव्वं मुसावायं जावजीवाए, अणिस्सिओ हं, नेव मयं मुसं व. इज्जा, नेवन्नेहिं मसं वायाविजा, मसं वयंते वि अन्ने न समजाणिज्जा. तं जहा. अरिहंतसक्खि. सिद्धसक्खिरं साहसक्विअं, देवसक्खिअं, अप्पसक्खिअं, एवं हवइ भिक्खू वा, भिक्खुणी वा, संजयविरय-पडिहय-पञ्चक्खायपावकम्मे, दिआ वा राओ वा, एगओ वा परिसागओ वा, सुत्ते वा जागर-18 माणे वा, एस खलु मुसावायस्स वेरमणे हिए, सुहे, खमे, निस्सेसिए, आणुगामिए, पारगामिए, सव्वेसि | पाणाणं, सव्वेसि भूआणं, सव्वेसिं जीवाणं, सव्वेसिं सत्ताणं, अदुक्खणयाए, असोअणयाए, अजूरणयाए, अतिप्पणयाए, अपीडणयाए, अपरिआवणयाए, अणुद्दवणयाए, महत्थे, महागुणे महाणुभावे, महा| पुरिसाणुचिन्ने, परमरिसिदेसिए पसत्थे, तं दुक्खक्खयाए, कम्मक्खयाए, मुक्खयाए, बोहिलाभाए. संसा रुत्तारणाए, तिकट्ट, उवसंपज्जित्ता णं विहरामि. दोच्चे भंते ! महव्वए उवडिओ मि मव्वाओ मुसावा| याओ वरमणं ॥२॥ - - RCMCAMC - 17011 JainEducation For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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