Book Title: Sadhu Pratikramanadi Sutrani
Author(s): Jagjivan Jivraj Kothari,
Publisher: Jagjivan Jivraj Kothari
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चत्तउ, तो जुग्गउ अहमेव पास पालहि मई चंगउ || २५ || अह अणुवि जुग्गयविसु कवि महि दीणह, जं पास वि उवयारु करह तुह नाह समग्गह ॥ सुच्चि किल कलाणु जेण जिण तुम्ह बसीयह, किं अनिण तं चैव देव ! मा मह अवहीरह || २६ || तुह पत्थण नहु होइ विहलु जिण जाणउ किं पुण, हउ दुक्खर निरु सत्तचत्त दुक्कउ उस्सुयमण ॥ तं मण्णउ निमिसेण एउ एओवि जइ लभइ, सच्चं जं भुक्खियवसेण किं उंबरु पच्चइ ॥ २७ ॥ तिहुअणसामिअ पासनाह ! मइ अप्पपयासिउ, किज्जउ जं नियरूवसरिसु न मं बहु जंपिउ | अण्णुण जिण जग तुह समो वि दक्खिण्णु दयासउ, जइ अवगिण्णास तुह जि अहह किं होइस हयासउ ॥ २८ ॥ जइ तुह रूविण किणवि पेअपाइण वे | लवियउ, तवि जाणुं जिणपास तुम्ह हउं अंगीकरिअउ ॥ इय मह इच्छिअजं न होइ सा तुह ओहावणु रक्खंतह नियकित्ति णेय जुज्जइ अवहीरणु ॥ २९ ॥ एव महारिह जत्त देव एहु न्हवणमहसउ, जं अगलियगुणगहण तुम्ह मुणिजणअणिसिद्धउ || इय मई पसिय सुपासनाह थंभणयपुरट्टि, इय मुणिवरु सिरिअभयदेउ विण्णवह अणिदिअ ॥ ३० ॥ इति श्रीस्तम्भन कतीर्थराज श्रीपार्श्वनाथस्तवनम् ॥
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