Book Title: Sadhu Pratikramanadi Sutrani
Author(s): Jagjivan Jivraj Kothari, 
Publisher: Jagjivan Jivraj Kothari

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Page 65
________________ 18 वरिससित्तमाणवमइ-मेणि, अवरावरसुहुमत्थबोहकंदलदलरहाण ॥ जायइ फलभरभरिय हरिय दुहदा-18 है हअणोवम, इय मइमेइणिवारिवाह दिस पास मई मम ॥ १४ ॥ कय अविकलकल्लाणवल्लि रल्लूरियदुहवणु, दाविअसग्ग-पवग्गमग्ग दुग्गइगमवारणुं ॥ जय जंतुहजणएण तुल्लं जं जणियहियावहु, रम्मु धम्मु सो जयउ पास जय जंतुपिआमहु ॥ १५॥ भुवणा रणनिवास दारिअ परदरिसणदेवय, जोइणि 2 पूअण खित्तवाल खुद्दासुर पसुवय ॥ तुह उत्तट्ट सुन सुट्ठ अविसंठुलु चिट्टहि, इय तिहुअणवणसीह | & पास ! पावाइ पणासहि ॥ १६ ॥ फणिफणफारफुरंतरयणकररंजिअनहयल, फलिणीकंदल दल तमाल निल्लुप्पलसामल ॥ कमठासुरउवसग्गवग्गसंसग्गअगंजिअ, जय पच्चक्ख जिणेस पास थंभणयपुराष्टि ॥ १७ ॥ मह मणु तरलु पमाणु ने य वाया वि विसंठुलु, नियतणुरवि अविणयसहावु अलसविहिलंघलु ॥ तुह माहप्पु पमाणु देव कारुण्णपवित्तउ, इय मइ मा अवहीरि पास पालिहि विलवंतउ ॥ १८॥ किं किं कपिउ ण य कलुणु किं किं व न जांपेउ, किं व न चिहिउ किछु देव दीणयमविलंबिउ ॥का| सु न किय निष्फललल्लि अह्महेहिं दुहत्तई, तह वि न पत्तउ ताणु किंपि पइं पहु परिचत्तई ॥ १९ ॥ Jan Education International For Personal & Private Use Only www.iminelib yong

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