Book Title: Sadhu Pratikramanadi Sutrani
Author(s): Jagjivan Jivraj Kothari, 
Publisher: Jagjivan Jivraj Kothari

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Page 37
________________ परिअट्टि पुच्छिअं, अणुपेहिअं, अणुपालिअं, तं दुक्खक्खयाए, कम्मक्खयाए, मुक्खयाए, बोहिलाभाए, 18/ है संसारुत्तारणाए. तिकट्ट, उवसंपज्जित्ता णं विहरामि.अंतोपक्खस्स, जं न वाइअं, न पढिअं, न परिट्टिअं, 8 18 नपुच्छिअं,नाणुपेहि, नाणुपालिअं, संते बले, संते वीरिए, संते पुरिसकारपडिक्कमे, तस्स आलोपमो,पडि-14 | कमामो, निंदामो, गरिहामो, विउट्टेमो, विसोहेमो, अकरणयाए अन्भुढेमो, अहारिहं तवोकम्मं, पायच्छित्तै । पडिवज्जामो, तस्स मिच्छामि दुकडं ॥ ४ ॥ | नमो तेसिं खमासमणाणं, जेहिं इमं वाइअंअंगबाहिरं उकालि भगवंतं, तं जहा. दसवेआलिअं, कप्पिआकप्पिअं, चुल्लकप्पसुअं, महाकप्पसुअं, उवाइअं, रायप्पसेणिअं,जीवाभिगमो, पण्णवणा, महापन्न| वणा, नंदी, अणुओगदाराई, देविंदत्थुओ, तंदुलविआलिअं, चंदाविज्जिअं, पमायप्पमायं, पोरिसिमंडलं, | मंडलप्पवेसो, गणिविज्जा, विज्जाचारणविणिच्छओ, झाणविभत्ती, आणविभत्ती, मरणविभत्ती, आय-15 । विसोहि, संलेहणासुअं, वीयरायसुअं, विहारकप्पो, चरणविसोहि, आउरपच्चक्खाणं, महापचक्खाणं, स व्वेसि पि एअम्मि, अंगबाहिरे उकालिए, भगवंते, ससुत्ते, सअत्थे, सगंथे, मनिज्जुत्तिए, ससंगहणिए, जा ACACHERECRESCY Jain Huation international For Personal & Private Use Only www.iminelib yong

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