Book Title: Sadhu Pratikramanadi Sutrani
Author(s): Jagjivan Jivraj Kothari,
Publisher: Jagjivan Jivraj Kothari
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पि अ छव्विहं तवो कम्मं ॥ उवसंपन्नो जुत्तों, रक्खामि महव्वए पंच ॥ ३२ ॥ सत् य भयट्टाणाई, संतविहं चैव नाणविभंगं ॥ परिवजंतो गुत्तो, रक्खामि महव्वए पंच ॥ ३३ ॥ पिंडेसण-पाणेसण, उग्गह सत्ति कया महज्झयणा ॥ उवसंपन्नो जुत्तो, रक्खामि महत्वए पंच ||३४|| अट्ठ य मयट्टाणाई, अट्ठ य कम्माई तेसिं बंधं च ॥ परिवज्जंतो गुत्तो, रक्खामि महव्वए पंच ॥ ३५ ॥ अट्ठय पवयणमाया, दिट्ठा अटूविह निहिं ॥ उवसंपन्नो जुत्तो, रक्खामि महव्वए पंच || ३६ || नव पावनिआणाई संसारत्था य नवविहा जीवा ॥ परिवज्जं तो गुत्तो, रक्खामि महत्वए पंच ॥ ३७॥ नव वंभचेरगुत्तो, दुनवविहं बंभचेरपरिसुद्धं ॥ उवसंपन्नो जुत्तो रक्खामि महव्वए पंच ॥ ३८ ॥ उवघायं च दसविहं, असंघरं तह य संकिलेसं च ॥ पविज्जंतो गुत्तो, रक्खामि महव्वर पंच ॥ ३९ ॥ सच्चसमाहिट्ठाणे, दस चेत्र दसओ समणधम्मं च ॥ उवसंपन्नो जुत्तो, रक्खामि महव्वए पंच ॥ ४० ॥ आसायणं च सव्वं, तिगुणं इक्कारसं विवज्जंतो | परिवजंतो गुत्तो, रक्खामि महव्वए पंच ॥ ४१ ॥ एवं तिदंडविरओ, तिगरणसुद्धा तिमलनिसलो. ॥ तिविहेण पडिकतो, रक्खामि महव्वए पंच ॥ ४२ ॥
२ ॥
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