Book Title: Sadhu Pratikramanadi Sutrani
Author(s): Jagjivan Jivraj Kothari,
Publisher: Jagjivan Jivraj Kothari
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साधुसाचा ज्ज रागं, एवं सुही होहिसि संपराए ॥५॥ पक्खंदे जलियं जोई, धूमके दुरासयं ॥ निच्छंति वंतयं
प्रतिक्रमण
प्रतिक्रमण ॥ २१॥ भोत्तुं, कुले जाया अगंधणे ॥६॥ धिरत्थु ते जसोकामी, जो तं जीवियकारणा॥ वंतं इच्छसि आवेडं, है। सूत्र.
से ते मरणं भवे ॥ ७ ॥ अहं च भोगरायस्स, तं च सि अंधगवन्हिणो मा॥कुले गंधणा होमो, संजमं निहुओ चर ॥ ८॥ जइ तं काहिसि भावं, जा जा दिच्छसि नारिओ ॥ वायाविधु व्व हडो, अहि| अप्पा भविस्सनि ॥ ९॥ तीसे सो वहणं सुच्चा, संजयाइ सुभासियं ॥ अकुंसेण जहा नागो, धम्मो सं-18 | पडिवाइओ ॥ १०॥ एवं करंति संबुद्धा, पंडिआ पवियक्खणा ॥ विणिअटुंति भोगेसु, जहा से पुरि-18
सुत्तमो ॥ त्ति बेमि ॥ ११ ॥ इति सामन्नपुब्वियज्झयणं ॥२॥ | संजमे सुष्ठिअप्पाणं, विप्पमुक्काण ताइणं ॥ तेसिमेअमणाइन्नं, निग्गंथाणं महेसिणं ॥१॥ उद्देसिअं कीअगडं, नियागमभिहडाणि अ॥ राइभत्ते सिणाणे अ, गंधमल्ले अ वीअणे ॥२॥ संनिही गि
हिमत्ते अ.राअपिंडे किमिच्छए। संवाहण दंतपहोअणाअ, संपुच्छण, देह पलोअणा अ ॥३॥ अट्ठावए | ॥२१॥ 18 अ नालीए, छत्तस्स य धारणट्ठाए ॥ तेगिच्छं पाहणापाए, समारंभं च जोइणो ॥४॥सिज्जाअरपिंडं च,8
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