Book Title: Sadhu Pratikramanadi Sutrani
Author(s): Jagjivan Jivraj Kothari, 
Publisher: Jagjivan Jivraj Kothari

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Page 58
________________ ॥२८॥ साधुसाध्वी वदंदुहिनिनायमहुरयरसुहगिरं ॥ ९॥ वेढओ ॥ अजियं जिआरिगणं, जिअसव्वभयं भवो हरि ॥ है, प्रतिक्रमण | पणमामि अहं पयओ. पावं पसमेउ मे भयवं ॥१०॥रासालद्धओ॥ करुजणवय-दृत्थिणाउरनरीसरो। सूत्र. पढमं तओ महाचक्कवाट्टिभोए महप्पभावो, जो बावत्तरिपुरवरसहस्सवरनयर-निगम-जणवयवई, बत्तीसा| रायवरसहस्साणुयायमग्गो ॥ चउद्दसवररयण-नवमहानिहि-चउसहिसहस्सपवरजुबईण सुंदरवई, चुलसी-1 हय-गय-रहसयसहस्ससामी, छन्नवहगामकोडीसामी आसि जो भारहम्मि भयवं ॥११॥ वेडओ॥ तं संति 81 | मंतिकरं, मंतिनं सब्वभया ॥ संतिं थुगामि जिणं, संति विहेउ मे ॥ १२ ॥ रासानंदिरं ॥ इक्खाग! | | विदेहनरीसर ! नरवसहा! मुणिवसहा!। नवसारयससिसकलाणण, विगयतमा विहुअरया ॥ अजिउत्त। मतेअगुणेहिं महामुणिअमिअबला विउलकुला । पणमामि ते भवभयमूरण जगसरणा मम सरणं ॥१३॥ | चित्तलेहा॥ देव-दाणविंद-चंद-सूरवंद हट्ठ-तुट्ट-जिट्ट-परम, लहरूवधंतरूप्पपट्टसेयसुद्धनिद्धधवल! दंतपंति॥ | संति! सत्ति-कित्ति-मुत्ति-जुत्ति-गुत्तिपवर, दित्ततेय वंदधेय सब लोअभाविअप्पभाव णे य पइस मे समाहिं ॥२८॥ ॥१४॥ नारायओ ॥ विमलससिकलाइरेअसोमं, वितिभिरसूरकलाइरेअतेअं॥ तिअसवइगणाइरेअरूवं, NACSCRI SECRECSCRACTESCRECC SHES Jain Education For Personal & Prive Only Winelyong

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