Book Title: Sadhu Pratikramanadi Sutrani
Author(s): Jagjivan Jivraj Kothari,
Publisher: Jagjivan Jivraj Kothari
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Jain Education I
फासंति, पालंति, पूति, तीरंति, किहंति, सम्मं आणाए आराहंति, अहं च नाराहेमि, तस्स मिच्छामि दुक्कडं | ॥८॥ सुअदेवआ भगवई, नाणावरणी अकम्म संघायं ॥ तेसिं खवेउ सययं, जेसिं सुअसायरे भत्ती ॥१॥ इति पाक्षिकसूत्रं समाप्तं ॥ ७॥
॥ ८ श्री पाक्षिकखामणा ॥
इच्छामि खमासमणो पिअं च मे जंभे, हट्टाणं, तुट्ठाणं, अप्पायंकाणं, अभग्गजोगाणं, सुसीलाणं, सुव्वयाणं, सायरिय उवज्झायाणं, नाणेणं, दंसणेणं, चरित्तेणं, तवसा अप्पाणं, भावेमाणाणं, बहुसुभेण भे दिवसो पक्खो, (चाउमासिओ, संवच्छरिओ) वकतो, अन्नो य भे कल्लाणेणं, पज्जुवट्ठिओ, सिरसा, मणसा, मत्थपण वंदामि ॥ १ ॥ इति ॥ गुरुवचनं ॥ तुभेहिं सम्मं,
इच्छामि खमासमणो, पुव्विं चेइआई वंदित्ता, नमंसित्ता, तुब्भण्हं पायमूले, विहरमाणेणं, जे केह बहुदेवसिआ, साहुणो दिट्ठा समाणा वा, वसमाणा वा, गामाणुगामं दुइज्जमाणा वा, राइणिआसं पुच्छति,
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