Book Title: Sadhu Pratikramanadi Sutrani
Author(s): Jagjivan Jivraj Kothari,
Publisher: Jagjivan Jivraj Kothari
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सूत्र.
साधुसाध्वी है ठाणं, समवाओ, विवाहपन्नत्ती,नायाधम्मकहाओ,उवासगदसाओ, अंतगडदसाओ, अणुत्तरोक्वाइअदसा- पतिक्रमण ॥ १९॥
ओ, पण्हावागरणं, विवागसुअं, दिदिवाओ, सव्वेहिं पि एअंमि दुवालसंगे गणिपिडगे भगवंते, ससुत्ते, । सअत्थे, सगंथे, सणिज्जुत्तिए, ससंगहणिए, जे गुणा वा, भावावा, अरिहंतेहिं, भगवंतेहिं, पन्नत्ता वा, परूविआ वा, ते भावे सहहामो, पत्तिआमो, रोएमो, फासेमो, पालेमो,अणुपालेमो, ते भावे सद्दहंतेहिं, पत्तिअं६ तेहिं, रोयंतेहिं, फासंतेहिं, पालंतेहिं,अणुपालंतेहिं, अंतोपरखस्स,जं वाइअं,पढिअं, परिअट्टिअं, पुच्छि, द अणपहिअं.अणपालिअंतं दक्खक्खयाए कम्मक्खयाए. मक्खयाए बोहिलाभाए, संसारुत्तारणाए.तिहै कट्ट, उवसंपज्जित्ता णं विहरामि. अंतोपक्खस्स जं न वाइअं,न पढिअं, न परिअट्टिअं,न पुच्छिअं, नाहै। णुपेहिअं, नाणुपालिअं, संते बले, संते वीरिए,संते पुरिसकारपरिकमे, तस्स आलोएमो, पडिकमामो, नि। दामो, गरिहामो, विउट्टेमो, विसोहेमो, अकरणयाए अन्भुटेमो, अहारिहं तवोकम्मं, पायच्छित्तं पडिवज्जा-1 मो, तस्स मिच्छामि दुकडं ॥ ७॥
नमो तेसिं खमासमणाणं, जेहिं इमं वाइअं दुवालसंगं, गणिपिडगं, भगवंत, तं जहा. सम्मं कारणं, 8
॥१९॥
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