Book Title: Sadhu Pratikramanadi Sutrani
Author(s): Jagjivan Jivraj Kothari,
Publisher: Jagjivan Jivraj Kothari
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मूत्र.
॥१८॥
साधुसाध्वी | गुणा वा, भावा वा, अरिहंतेहिं, भगवंतेहिं, पण्णत्ता वा, परूविआ वा, ते भावे सद्दहामो, पत्तिआमो, रो- पतिक्रमण
एमो, फासेमो, पालेमो, अणुपालेमो, ते भावे सदहंतेहिं, पत्तिअंतेहिं, रोअंतेहिं, फासंतेहिं, पालंतेहिं, अणुपालंतेहिं, अंतोपक्खस्स, जं वाइअं, पढिअं, परिअट्टिअंपुच्छिअं, अणुपेहिअं, अणुपालिअं, तं दुक्खक्ख-11 याए, कम्मक्खयाए, मुक्खयाए, बोहिलाभाए, संसारुत्तारणाए, तिकट्ट, उवसंपज्जित्ताणं विहरामि, अं. | तोपक्खस्स, जं न वाहअं, न पढिअं, न परिअट्टिन पुच्छिअं, नाणुपहिअं, नाणुपालिअं, संते बले, संत । | वीरिए, संते पुरिसकारपरिफमे, तस्स आलोएमो, पडिकमामो, निंदामो, गरिहामो, विउट्टेमो, विमोहेमो, ४ अकरणयाए अब्भुट्टेमो, अहारिहं तवोकम्म, पायच्छित्तं पडिवज्जामो, तस्स मिच्छामि दुकडं ॥५॥
नमो तेसिं खमासमणाणं, जेहिं इमं वाइअं अंगबाहिरंकालिअंभगवंतं, तं जहा, उत्तरज्झयणाई, दसा * कप्पो, ववहारो, इसिभासिआई, निसीहं, महानिसहं, जंबुद्दीवपण्णत्ती, सूरपण्णत्ती, चंदपन्नत्ती, दीवसागर-2
पन्नत्ती,खुड्डियाविमाणपविभत्ती,महलिआविमाणपविभत्ती,अंगचूलिआए, वग्गचूलिआए,विवाहचूलिआए, १० ४ अरुणोववाए, वरुणोववाए, गरुलोववाए, धरणोववाए, वेलंधरोववाए, वेसमणोववाए, देविंदोववाए, उट्ठ
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