Book Title: Sadhu Pratikramanadi Sutrani
Author(s): Jagjivan Jivraj Kothari, 
Publisher: Jagjivan Jivraj Kothari

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Page 34
________________ साधुसाध्वी गमेगं, सम्मत्तं एगमेव नाणं तु ॥ उवसंपन्नो जुत्तो, रक्खामि महब्बए पंच ॥२१॥ दो चेव. रागदोसे, प्रतिक्रमण ॥१६॥ दुण्णि अ झाणाइं अट्टरुद्दाइं ॥ परिवज्जतो गुत्तो रक्खामि महव्वए पंच ॥२२॥ दुविहं चरित्तधम्म,दुन्नि अ झाणाई धम्म-सुक्काई॥ उवसंपन्नो जुत्तो, रक्खामि महव्वए पंच ॥२३॥ किण्हा नीला काउ, तिनिअर लेसाओ अप्पसत्थाओ॥ परिवज्जतो गुत्तो, रक्खामि महव्वए पंच ॥ २४ ॥ तेउ पम्हा सुक्का, तिन्नि अ | लेसाओ सुप्पसत्थाओ॥ उवसंपन्नो जुत्तो, रक्खामि महब्बए पंच ॥२५॥मणसा मणमच्चविऊ, वाया-|| | सच्चेण करणप्सच्चेण ॥ तिविहेण वि सच्चविउ, रक्खामि महब्बए पंच ॥ २६॥ चत्तारि अदुहसिज्झा, चउरो सन्ना तहा कसाया य ॥ परिवजंतो गुत्तो, रक्खामि महब्बए पंच ॥ २७॥ चत्तारि अ सुहसिज्झा, चविहं संवरं सभाहिज्जा ॥ उवसंपन्नो जुत्तो, रक्खामि महव्वए पंच ॥ २८ ॥ पंचेव य काम-- गुणे, पंचव य अण्हवे महादोसे ॥ परिवजंतो गुत्तो, रक्खामि महब्वए पंच ॥ २९ ॥ पंचिदिअसंवरणं, | ४) तहेव पंचविहमेव सज्झायं ॥ उवसंपन्नो जुत्तो, रक्खामि महब्बए पंच ॥ ३०॥ छज्जीवनिकायवहं, छप्पि ४ अ भासाओ अप्पसत्थाओ॥ परिवज्जतो गुत्तो, रक्खामि महन्वए पंच ॥३१॥ छव्विहमभितरयं,बझं ॥१६॥ Join Education international For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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