Book Title: Sadhu Pratikramanadi Sutrani
Author(s): Jagjivan Jivraj Kothari, 
Publisher: Jagjivan Jivraj Kothari

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Page 28
________________ R मृत्र. साधुसाध्वी कालओ भावओ, दव्वओ णं परिग्गहे सचित्ताचित्तमीसेसु दव्वेसु, खित्तओ णं परिग्गहे सव्वलोए, का- प्रतिक्रमण ॥१३॥ लओ णं परिग्गहे दिआ वा राओ वा, भावओ णं परिग्गहे अप्पग्घे वा महग्घे वा, रागेण वा दोसेण वा, जं पि य मए इमस्स धम्मस्स केवलिपण्णत्तस्स, अहिंसालक्खणस्स, सच्चाहिटिअस्स, विणयमूलस्स, खंति| पहाणस्स, अहिरण्णसोवण्णिअस्स, उवसमप्पभवस्स, नववंभचेरगुत्तस्स, अपयमाणस्स, भिक्खावित्तिअस्स, | 3| कुक्खिसंबलस्स, निरग्गिसरणस्स, संपक्खालिअस्स, चत्तदोसस्स, गुणग्गाहिअम्स, निविआरस्स, निवि-13 |त्तिलक्खणस्स, पंचगहब्बयजुत्तस्स, असंनिहिसंचियस्स, अविसंवाइअस्स, संसारपारगामिअस्स, निव्वाण- | गमणपज्जवसाणफलस्स, पुद्वि अन्नाणयाए, असवणयाए, अबोहियाए, अणभिगमेणं, अभिगमेण वा, पमाएणं, रागदोसपडिबद्धयाए, बालयाए, मोहयाए, मंदयाए, किड्डयाए, तिगारवगुरुयाए, चउक्कसाओवगएणं, | | पंचिंदिअवसट्टेणं, पडिपुन्नं भारयाए, सायासुक्खमणुपालंतेणं, इहं वा भवे अन्नेसु वा भवग्गहणेसु, परि| ग्गहो गहिओ वा, गाहाविओ वा, धिप्पंतो वा परेहिं समणुन्नाओ,तं निंदामि गरिहामि तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कायेणं, अईअंनिंदामि, पड्डुप्पन्नं संवरेमि,अणागयं पञ्चक्खामि, सव्वं परिग्गरं जाव ॥१३॥ For Personal Private Use Only

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