Book Title: Sadhu Pratikramanadi Sutrani
Author(s): Jagjivan Jivraj Kothari,
Publisher: Jagjivan Jivraj Kothari
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साधुसाध्वी
॥ ७ ॥
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गृहस्थतणो भाजन भांज्यो, फोड्यो, वली पाछो आप्यो नहीं, सूतां संथारिया उत्तरपट्टा टळतो अधिको उपगरण वावर्यो, देशतः स्नान मुखें भीनो हाथ लगाड्यो, सर्वतः स्नानतणी वांछा कीधी, शरीरतणो मल फेड्यो, केश रोम नख समार्या, अनेरी कांइ राढी विभूषा कीधी. अकल्पनीय पिंडादि विषओ अनेरो जे कोई अतिचार० ॥ ८ ॥
आवस्य सज्झाए, पडिलेहण ज्झाण भिक्ख अभतट्टे || आगमणे नीगमणे, ठाणे निसिअणे तुअट्टे ॥ १ ॥ आवश्यक उभयकाल व्याक्षिप्त चित्तपणे पडिकमणो कीधो, पडिकमणा मांहिं उघआवी, बेठां पडिकमणुं कीधुं, दिवसप्रतें चार बार सज्झाय, सातवार चैत्यवंदन न कीधां पडिलेहणा आधी पाछी भणावी, अस्तो व्यस्तकीधी, आर्त्त रौद्र ध्यान ध्यायां, धर्मध्यान शुक्लध्यान ध्यायांनहीं, गोचरीगयां बेंतालीश दोष उपजता चिंतव्या नहीं, छती शक्तिए पर्व तिथीए उपवासादिक तप कीधो नहीं, उपासरा देहरामांहिं पेसतां निस्सिही, नीरसतां आवस्सही कहेवी विसारी, इच्छामिच्छादिक दशविध चक्रवाल समाचारी साचवी नहीं, गुरुतणो वचन तहत्तिकरी पडिवज्यो नहीं, अपराध आव्यां मिच्छामि दुक्कडं दीघा
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प्रतिक्रमण सूत्र.
।। ७ ।।
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