Book Title: Sadhu Pratikramanadi Sutrani
Author(s): Jagjivan Jivraj Kothari, 
Publisher: Jagjivan Jivraj Kothari

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Page 15
________________ दिकनो छांटो लाग्यो, खरड्यो रह्यो, लेप तेल ओषधादिक तणो संनिधि रह्यो, अतिमात्रायें आहार | लीधो, का मत विपइयो अनेरो जे कोई आतचार० ॥६॥ कायपाक, गामतपमारे नीसारे पग पडिलेहवा विसार्या, माटी बीटुं खडी धावडी अरणेटो पापाणतणी वातली ऊपर पग आयो, अप्पकाय वाधारी फूसणा हुआ, वहोरवा गया ऊलखो हाल्यो, | लोटो ढोल्या, काचा पाणी तणा छांटा लाग्या, तेउकाय वीज दीवातणी उजेही हुई, वाउकाय उघाड़ें । मुखें बोल्या, महावाय वाजतां कपडा कांबली तणा छेडा साचव्या नहीं, फूंक दीधी, वनस्पतिकाय नील ४ फूल सेवाल थड मूल फूल फल वृक्षशाखा प्रशाखा तणा संघट्ट परंपर निरंतर हुवा , त्रसकाय बेइंद्री है तेइंद्री चउरिंद्री पंचेंद्री काग बग उडाव्या, ढोर त्रासव्यां, बालक बीहाव्यां. पदकाय विषइओ अनेरो जे कोई अतिचार ॥७॥ ___ अकल्पनीय सज्झा, वस्त्र पात्र पिंड परिभोगव्यो, सिजातरतणो पिंड परिभोगव्यो , उपयोग कीधा पाखे वहोयों, धात्रीदोष, त्रस बीज संसक्त पूर्वकर्म पश्चात्कर्म उद्गम उत्पादना दोष चिंतव्या नहीं, REC% Juin tuction International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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