Book Title: Sadhu Pratikramanadi Sutrani
Author(s): Jagjivan Jivraj Kothari, 
Publisher: Jagjivan Jivraj Kothari

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Page 11
________________ * खाय पावकम्मे, अनिआणोदिहिसंपन्नो मायामोसं विवज्जिओ. अबाइज्जेसु दीवसमुद्देसु पन्नरससु कम्मभूमीसु, जावंत केवि साहू, रयहरण गुच्छ पडिग्गह धारा,पंचमहव्वयधारा अठारससहस्ससीलंगधारा अक्खआयारचरित्ता ते सव्वे सिरसा मणसा मत्थएण वंदामि. खामेमि सव्वजीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे ॥ मित्ती मे सव्वभूएसु, वेरं मज्झं न केणई ॥१॥ एवमहं आलोइ अ निंदिअ गरहिय दुगंछिअं| सम्मं ॥ तिविहेण पडिकतो वंदामि जिणे चउव्वीसं॥२॥इति ॥ साधु प्रतिक्रमण सूत्रम् ॥ ॥६॥ पाक्षिक अतिचारः॥ ___नाणंमि दंसणमि अ, चरणमि तवंमि तहय विरयंमि॥आयरणं आयारो, इय एसो पंचहा भाण ओ॥१॥ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार, वीर्याचार, ए पंचविध आचार मांहि जे कोई | * अतिचार पक्ष दिवस मांहिं सूक्ष्म वादर जाणतां अजाणतां हुओ होय ते सविहुं मन वचन कायाए : करी मिच्छामि दुक्कडं ॥ १॥ तत्र ज्ञानाचारे आठ अतिचार ॥ काले विणए बहुमाणे, उवहाणे तहय निन्हवणे ॥ वंजण अत्थ For Personal & Private Use Only

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