Book Title: Purusharthsiddhyupay
Author(s): Amrutchandracharya, Munnalal Randheliya Varni
Publisher: Swadhin Granthamala Sagar

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Page 12
________________ t h istam &C. NÄ VIPi. MHARASHTRA) ओं नमः सिद्धेभ्यः । श्रीमदमृतचन्द्राचार्यविरचित पुरुषार्थसिद्धयुपाय 'भावप्रकाशनी' हिन्दीटीका सहित ( हिन्दीपयानवाद, अन्वय, अर्थ, भावार्थादियुक्त) AMRmamthithilimanakamanata SRIGARERE माषादीकाकारका मंगलाचरण देव-शास्त्र-गुरु-धर्मको प्रग बारम्बार तत्वज्ञान आधार अरु भवि-जीवन-हिसकार ॥ १॥ अन्धकारका मंगलाचरण तज्जयति परंज्योतिः समं समस्तैरनंतपर्यायः । दर्पणतल इव सकला प्रतिफलति पदार्थमालिका यत्र ।। १ ॥ ल लाम er उस उज्वल ज्योतिको नमते ओ अद्भुत गुणवाली है। तीनलोक तिहुकाल माप्ति नहिं जिसके सम उपकारी है ॥ एककालमें जो दरशाती दर्पण सम सब अोंकोहै अनन्त पर्याए जिनमें जानत है उन सर्वोको 11 १ ॥ साहचर्यसे-- धर्ममूलविज्ञानज्योतिके साथ धर्मको ममते हैं। वीतरागविज्ञान साथ रह अक्षय सुखको करते हैं । अन्वय-अर्थ " आचार्य महाराज इस श्लोक द्वारा गुणोंके माध्यमसे गुणी परमात्माका विनय या नमस्कार १. मह सर्वनाम पर है अतः जो भी महात्मा ऐसे हों, उन सबको नमस्कार किया जाता है.---. उनकी मंगलकामना या स्मृति की जाती है, उन्हें बहुमान दिया जाता है। यह कार्यसमयसारको नमस्कार या कृतज्ञताका शापन है । आचार्य स्वयं तद्गुणलळ्यर्थी हैं। साहचर्यन्यायसे वीतरागधर्मको भी नमस्कार या बहुमान दिया गया है, सिर्फ विज्ञानको ही नहीं, यह तात्पर्य है । २. आश्चर्य व अतिशयजनक 1 42_ntri अनलाई

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