Book Title: Purusharthsiddhyupay
Author(s): Amrutchandracharya, Munnalal Randheliya Varni
Publisher: Swadhin Granthamala Sagar

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Page 10
________________ विषय-सची WwwwwwwwwwwwvinAiwviral पीठिका पेज १ से ४० तक.---इसमें मंगलारण, गन्धरचनाका उद्देश, निश्चय व्यवहारका पक्ष आदि ८ श्लोक है। (१ अध्याय पहिला, पेज ४१ से ७२ तक-इसमें जीवतस्त्र (द्रव्य ) का असाधारण लक्षण, उसका विशव विवेचन, सात भंग अनुजीवी प्रतिजीवी गुणका विश्लेष्टण, कर्तृत्व भोक्तृत्त्व, छह मतोंका सिद्धान्त, जीव व कमौका बन्धन कैसा? उसका खुलासा. बंधके भेद, परस्पर निमित्तता, शंकासमाधान, मूलमं भूलरूप प्रतिभासफा होना संसारका कारण है, पुरुषार्थसिद्धिका उपाय, ज्ञान और श्रद्धानके विश्यमें शंकासमाधान, मिथ्यात्वके भेद, सातत्वोंमें विपरीतताका प्रदर्शन, सम्यग्दर्शन प्राप्त होने की योग्यता, मोक्ष प्राप्त होनेकी योग्यताका निरूपण है। (२) अध्याय दुसरा, पेज ७३ से १५१ तक-इसमें साधकको भूमिका, मुनिका लक्षण व कर्तव्य निश्चय और व्यवहार रत्नत्रय, उपदेश देनेका क्रम, अक्रम उपदेश देने में हानि, प्रावकको धर्मकी आवश्यकता; सम्यग्दमिकी आराधना पहिले क्यों है? इसका समाधान, सम्यग्दर्शनका लक्षण व भेद, तथा उसके स्वामी कौन हैं, पंचलब्धियों का स्वरूप, पंद्रह द्रव्यों का स्वरूप व भेद, सम्यग्दृष्टिक ६६ गुण, तथा आठ अंगोंका निश्चय व्यवहार कथन, सम्यग्ज्ञानकी आराधना व साथ २ होने पर भी भेद व उसका कारण आदि २ कथन है। सम्यक्चारित्रकी आवश्यकता व उसका अन्तिम स्थान क्यों ? उसके उत्सर्ग अपवाद भेद व साधुओंके तीन भेद । (३) अध्याय तीसरा, पेज १५२ से १९५ तक-इसमें श्रावक धर्म ( अणुव्रत ) का कथन, मुनि व श्रावकका लक्षण, उसके भेद ध निश्चय व्यवहार रूपका खुलासा, फलभेद, निश्चयाभाम्रीका लक्षण, उससे होने वाली हानि, अन्यमतोंमें भी हिंसाका निषेध व अहिंसाका पोषण, परन्तु यथार्थ ज्ञान न होनेसे संसार परिभ्रमण ही होता है हिंसा आदि चार बातोंका निर्धार । (४) अध्याय चौथा, पेज १९६ से २१३ तक इसमें अष्टमूलगुण एवं उनमें मतभेदका प्रदर्शन ६ स्पष्टीकरण, हिंसाको प्रचुरता, तर्क व समाधान, उत्सर्ग व अपवादका स्पष्टीकरण । (५) अध्याय पाचयों, पेज २१४ से २९८ तक-इसमें अहिंसारूप धर्मको पालनेका उपाय, पालनेक ९ भेद, धर्म और चारित्रमें अभेद, अधर्म और सुखका समन्वय देखकर धर्मसे अचि या अथक्षा नहीं करना । धर्मका फल समय आनेपर अच्छा ही होता है, अधर्मका कल बुरा होता है, भ्रममें नहीं पड़ना चाहिये, हिंसाको धर्म माननेका खंडन, ( २ ) असत्यका कथन, महा असत्यके ३ भेद व उदाहरण, चौथे भेद ( सामान्य ) ३ भेदों ( गहित, सावध, अप्रिय ) का स्थरूप य उदाहरण । (३) चोरी पापका कथन, उससे होनेवाली हानि, ' (४) कुशील ( अब्रह्म ) का कथन, उसके भेद, विपक्षी ब्रह्मचर्यके भेद । ( ५ ) परिग्रह पापका स्वरूप, उसके भेद, हिंसाके साथ व्याप्ति, अन्तरंग व बहिरंग परिग्रहके नाम, मिथ्यात्व व अमंसानुबंधीका कार्य व गहबंधन, विशेषार्थ व भ्रम निवारण, रात्रि भोजन में हिंसाको अधिकता। .:.::.:.:. HBACK

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