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- पुरुषार्थसिवमुपाप :.. ( ६ ) अध्याय छठवां, पेज २९९ से ३५७ तक इसमें सात शोल ( तीन गुणन्नत, ४ शिक्षाप्रत ) का स्वरूपक्रम, पिंड शुद्धिमें मक्खनका त्याग, श्रावकके १७ नियम शंका समाधान, दाताके ७ गुण, पात्रोंके भेद अनुद्दिष्ट भोजनका लक्षण, १२ अतोंसे ११ प्रतिमाओं का निर्माण आदि ।
(७) अध्याय सातवा, पेज ३५८ से ३६५ तक-इसमें सल्लेखनाका स्वरूप है, आत्मपात नहीं है, धर्म है।
(८) अध्याय आठया, पैज ३६६ से ३८८ तक-इसमें १२ यतोंके पांच २ अतिचार है, कुल' सम्यग्दर्शन व सल्लेखनाके मिलाकर ७० होते हैं।
(९) अध्याय नवमां, पेश ३८९ से ११३ तक-इसमें सकलधारिणका कथन, पालनेकी अभ्यास रूप विधि, प्रसंगवश शंका समाधान: विशेष छानवीन व सिद्धान्त कथन, सपके अन्तरंग बहिरंग भेद, निरुक्ति अर्थ, सम्यग्दर्शनको विशेषताएं, विनयकी विधि, ६ आवश्यक, ३ गुप्ति, ५ समिति १० धर्म १२ भावना २२ परोषह, इन सबका स्वरूप बताया गया है।
(१०) अध्याय बशमा, पेज ४१४ से ४३७ तक इसमें अन्तिम निष्कर्ष बतलाया है, ग्रन्थकर साहित है । रत्नत्रयको व मुमपी प्राप्त करनेको योग्यता, ऐक साय बंध व मोक्ष । मित्र उपयोग द्वारा) या संघर निर्जरा व आसबका सद्भाव बतलाया गया है, स्याडादन्यायसे सबकी सिद्धि, शंका, समाधान, अन्तिम प्रयोजन, अपना परिचय है ।