Book Title: Prathamanuyoga Dipika
Author(s): Vijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
WAmALIAMARRIZMATMAVIMARoom
RARIYARARAMH
श्र
!
कला, वाद्यगोष्ठी करते थे । देवमण शुक का रूप बनाकर पाते उन्हें सुललित, सुस्पष्ट श्लोक रटाकर शुद्ध उच्चारण कराते । हंस वेण धारी देवों को कमल दण्ड स्वयं अपने कर से खिलाते । इसी प्रकार गज, प्रश्न, कौंच मल्ल प्रादि के रूप में आये देवगणों के साथ नाना प्रकार की क्रीड़ाएं करते । वन क्रीड़ा, जल क्रीड़ा आदि देवों के साथ ही करते । वे ही उन्हें हार, मुकुट, पुष्पमाला, गंध, वस्त्रादि लाते थे । अमत समान आहार-भोजन भी देवों द्वारा ही लाया जाता था। इस प्रकार २० लास्त्र पूर्व बाल्यकाल के पूर्ण कर प्रभ यौवन काल में प्रविष्ट हा। सख-वर्ष पल के समान और दुःख-पल वर्ष के समान बीतते हैं। सर्व सुखी ऋषभदेव का समय तेजी से दौड़ रहा था और उनके शरीर का सौन्दर्य प्रांगोपांगों से होड़ लगाये संसार को चकित कर रहा था।
SCSewa
देवालिशायि प्रभु के उमड़ते यौवन मे पिता के मानस पर एक गम्भीर रेखा स्त्रीची। वे चौंक उठे। आनन्द से उछल पड़े। कितना सुहाना रूप, कितना सलौना गात ? क्यों न इस कल्पद्रुम के सहारे कल्पलता चढ़ाऊँ ? अर्थात् वृषभ कुमार का विवाह इनके ही अनुकूल सुन्दर गुणवती माननीय उत्तम वंश की कन्या से करना चाहिए । यद्यपि कुमार इस रूपगाशि में भी निविकार हैं, भोगेषणा नहीं के बराबर हैं, कषाय अत्यन्त मन्द है, तो भी प्रस्ताव रखकर उनकी सम्मति प्राप्त करना चाहिए। क्या वह मेरा प्रस्ताव अस्वीकृत करेगा ? नहीं ! वह जगन्नाथ होकर भी विनयी और पितृभक्त भी है। भला अपने पिता को कष्ट हो, माँ को पीड़ा हो ऐसा वह करेगा ? नहीं, नहीं । चल आज निरर्णय कर इस कामना को साकार रूप दे ही दं। विवाह प्रस्ताव
उषाकालीन रवि रश्मियाँ जिस प्रकार प्रसारित होती हैं उसी प्रकार माभिराजा का मनोरथ सूर्य नाना सस्वद कल्पनामों के साथ बढ़ रहा: था । ये बड़ी उमंग, प्रीति वात्सल्य और भक्ति से प्रभु के पास पहले वषम स्वामी की चेष्टाओं से उनका हृदय दोलायमान हो रहा था। एक ओर विश्व कल्याण, शिवपथ दिखाई पड़ रहा था। दूसरी ओर लोक-यवहार का प्रपयन । धर्य से पहुँच ही मये प्रभ के पास बोल हे देव ! श्राप जमनायक हैं, मोक्ष मार्ग के पथिक हैं तो भी में कहा प्रार्थना करता हूँ। गृहस्थाश्रम के बिना आत्माश्चम-मोक्षमार्ग की सिद्धि