Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
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________________ ++ दशमाङ्ग प्रश्नव्याकरण मूत्र प्रयम अश्रवद्वार RA समराहि पावकम्माइ दुक्कताई एवं वयण महप्पगम्भो,पडिसुया सहसंकुलो तासओसया णिरयगोयराणं,महाणगर डझमाण सरिसो णिग्योसो सुच्चए अणिट्ठो तहियं मेरइयाणं जातिजं साणं जातणाहि॥१५॥कि ते असिवण दम्भवण जंतपत्थरसूईतल क्खारवावि कलकलित्त वेयरणिकलंब वालुया जलियगृह निरंभणं उसिणोसिण कंटइल, दुग्गम रहजोयण तत्तलोहवह गमण वाहणाणि // इमेहि विविहहिं आयुहेहिं किं ते मोग्गर अरे दुष्ट तू यह वचन किम को मुनाता है ? तू तेरे पापकर्म के प्रभाव से ही दुःखित होता है. तैने कैसे कर्म / किये हैं उस का स्मरण कर, इस तरह उन के पूर्वकृत कमों का स्मरण कराते हैं, कृतं कर्म कह सुनाते हैं। अरे दुष्ट ! तू अकृत्य करन बाला है ऐमा कहकर उम की निर्भमना करते है. इस प्रकार नैरायिको के दीन वचन से और पग्माधर्षी के तर्जनाकारी वचन से नरक में मदैव में हाहाकर पचता है. वह हाहा कार ही महात्रास करनेवाला है. यथा दृष्टान्त-जैसे किमी नगर में चारों और दाव लगने से वहां रहे, हुए मनुष्य का कोलाहल शब्द होता है वैस नरक में सदैव कोलाहल मचा रहता है. यह अत्यंत अनिष्ट होना है. इस प्रकार के शब्द नरक में सुनाई देते हैं // 15 // वहां नरक में खड्ग समान वन हैं. इम में प्रवेश करने से ही नैरमिक पीलाते हैं, उन के शरीर के खण्ड खण्ड हो जाते हैं, मूह के अग्र जैसा तीक्ष्ण . बन है. तेजाप अथवा क्षार आदि की मरी हुई वावडियों हैं. इसमें प्रवेश करते ही नैरयिक मल जाते हैं.' comwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww 41448+ हिमानायक प्रथम अध्ययन 41+