Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari

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Page 208
________________ एगतीसाए / सिद्धाइगु यं, बतीसाए जोगसंगएहिं, तेत्तीसासायणाए, 198 बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी - करता होवे वैसी स्थितिमें म.रे, ४अग्नि प्रदीप्त कर अथवा कोठादिकके धन से रुंध कर मच्छगदि जीवों को मारे, ५दुष्ट परिणामसे कम पाणके उत्तमांग (मस्तक) खङ्गादिकमे छेदन करे, 6 जैसे लूटेरे वैश्यादिक बनकर पथिक जन को मारकर हते हैं वैसे ही मुर्ख जन को देखकर हंसे अथवा दंडादि से मारने में आनंद माने, 7 गुप्त अनाचारवाला अपना दुष्ट आचार ढके; अन्य की माया से अपनी माया छिपावे. असत्य बोले और मूलगुण उत्तर गुण की घात करे, 8 स्वतःने ही ऋषि की धातकी होवे और जिनोंने घात नहीं की होवे उनका नाम बतलावे, ९जानता हुवा परिषदा में सत्य मृषा [मिश्र) भाषा बाले और क्रोध से निवर्ते नहीं. 10 राजा के विद्यमान नहीं होने पर उन की स्त्री तथा धनकी उत्पतिका नाश करे सामंत दिक में भेद डाले. उन की लक्ष्मी अपन आधीन करे, जब वे कोमल दीन वचनों बोलते हुवे उनको पास आवे तब के उस की निर्भत ना करे, 12 कोई कूपार भूत (गल ब्रह्मचारी) नहीं होने पर 'कूमार भूतहूं ऐमा कहे, 3 फीर स्त्री के आधीन बनकर उन का सेवन करे. 12 अब्रह्मचारी न होने पर ब्रह्मचारी कहे, 13 जो राजादिक के धन से अपनी आजीवि का करता हो और उस राज्य संबंधि प्रसिद्धि से राजा के धन में लोभ करे, 14 ग्राम के मालिक ने अथवा जन समुह ने अनीश्वरको ईश्वर बनाया. इन के प्रसाद से ही उस को लक्ष्मी प्राप्त होगइ फीर उन का उपकार भूलकर ईर्षा से उस की अ.जीविका का छेदन करे.* *प्रकाशक-राजाबहादुर लालासुखदेवमहायजी उचालाप्रसादजी * - -

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