Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari

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Page 233
________________ दशमान-प्रश्नव्याकरण मूत्र-द्वितीय संवरद्वार - मजिय निट्ठाणग द लियंबसेहंब दुइदहिसरयमज्जबर बारुणीसहका पिसायण साकटारस बहु प्पगारेसु भोयणेसु मणुण्ण गंध रस फास बहु दव्यसंभिएसु अण्णेसुए एवमाइए रसेसु मणुण्ण भद्दएस नतेसु समणेणं नस जियव्वं, जाव नसइच मइंच तत्था कुज्जा, पुणरघि जिभिदिएण साइयरसाई अमणुण्ण पावगाइ, किं ते अरस विरस सीय लुक्ख निजप्प पाण भोयणाई दोसीय वाण्ण कुहिय पूहिय अमणूण्ण विण? सुय 2 बहु दुभिगंधाइ तित्तकडुय कसाप अंबिलरस लिंड नीरसाइं अण्णेसुय एवमाइएसु अमणुण्ण पावएसु नतेसु समणेण सियव्वं जाव चरेज धम्म // 18 // प्रकार के भोजन, मधु, मांस, मदिरा, बहुमूल्प का बनाया हुवा द्रव्य, बड़े घोल, वडे दुध, दधि, सरका मधु, मदिरा, सिन्धुढा, कापी रूनी, शाक, अठारह प्रकार के पाक, भोजन के मनोरम गंध रस और स्पर्श बहुत द्रव्य से संयुक्त और इस प्रकार के अन्य कल्याणकारी मनोज्ञ रस में आसक्त होवे नहीं यावत् उस में गति करे नहीं. यह अच्छे रस का कथन कहा, अब खराब रस का कथन करते हैं-रस रहित, विगहारसवाला ठंडा लुखा दुवा अविधी से निपजाया हुआ, भोजन, चपन, सडाचा, कीडे पडा हुआ, अमनोत्र, खराव बहुत प्रकार की दुर्गंध मय, तीखा कदुमा, कसायला, अम्बट, खराब स, निरस इत्य.दि अमनोज्ञ पाप कारी रस में शेष करे नहीं यावत् वर्ष में विचरे. // 18 // 44 निष्परिग्रह नामक पंचम अध्ययन 481 4

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