Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
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________________ देशमाङ्ग-प्रश्नव्याकरण सूत्र द्वितीय-संचरद्वार 4.1 फासिदिएणं फासिय फासाइं अमणुण्ण. पावकाई किं ते. अणेग . बह बंध: / / तालणाकण्ण अइभाररोहणं, अंगभंजण, सूइंनक्खवप्पवेसगाय पत्थण लक्ख रस खार तेल्ल कलकल तओय सिंसक काललोह सिंचण हडिबंधण रज्जुनिग्गल संकल, हत्थंडुय, कुंभीपाक दहण सीहपुछणउबंधण सूलभेयगय चलण मलण कर चरण कन्ननासोट्ट सीस छेयण, जिन्भयण वसण नयण हियय दंत भंजण, जोत्तलय कसप्पहार पायपण्हि जाणुपत्थर निवाय पीलणकवि कत्थु अगणि विच्छयडं कवातयवदंतमसग निवाए दुनिसिज्ज दुन्निसीहिया कक्खड गुरु सीय उसिण का कथन करते हैं. अनेक प्रकार के रस्सी अ दिने बंधना, दंडा दिसे प्रहार करना, ताडना करना, त्रिशूलादि चिन्ह करना, बहुत भार भरना,अंगोपांग का छेदन करना, सूइ नखें में प्रवेश करना, तीखारस क्षार, तेल कलकलता गरम किया तरुआ सीसे को गरम कर उस से शरीर का संचन करना, खोडमें। डालना, लोहकी मंडी में हाथ पाँव डालन', कुंभीपाक में पचान, इन्द्रियका छेद करना वृक्ष से लटकाना शूलीसे शरीर मेदना, पगनीचे ममलना, हाथ पंव कान अष्ट मस्तक जिव्हा और पुरुष चिन्हका छेद * करना, आँखो फेडना, नाक तोडना, कम्बा से प्रहार करना, जूते से मारना, घूटना तोडना, अभि में जलाना, घ.नीपीलना, बिच्छु कुटाना, अग्निपर सुला ग, अताप में खड़ा रखना, देशमच्छरादि कटवाना, 2. निष्परिग्रह नामक पंचम अध्ययन 42*