Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari

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Page 226
________________ मचारी मुनि श्री अमोलक ऋापकी - अकुडिलं अणुत्तरं सव्वदुक्ख पावाणं विमोसमणं तस्स इमापंच भावणाओ चरिमस्स है. वयस्सहोइ परिगहवरमण रक्खण्णट्टयाए॥१४॥ पढमं सो इंदिएण सोच्चाप्तहाई मण्णणं महगाई किं तेवर मुख मुयिंग पणव दद्दर कच्छभि वीण विपंची वल्लइ वहसिक सुघास नंदीसुसरपरिवादिणि बंसतूणक पव्वय तंती तल ताल तुडिय निग्घोसे गाय वाइयाई नड नट्टक जल मल्ल मुट्ठिक लंबक कहक, पवक लासक आइक्खग लंख मख तूणइल तूंब वीणिय तालायर पकरणाणिय, 'बहुणि महुणि *पकाचक-राजाबहादुर काला मुखदर सहायजीवालाप्रसादमी* भद्र कल्याण की कर्ता. शुद्ध मोक्ष मार्ग अकुटिल, अनुत्तर, प्रधान और सब दुःख उपशपाने का तुभूत पांच भावना श्री श्रमण भगवान ने कही है // 14 // प्रथम भानना श्रोत्रेन्द्रिय के प्रधान मनोज्ञ शब्द श्रवण करे. शिष्य प्रश्न करता है कि कौन से प्रधान मनोज्ञ शब्द ? गुरु कहते हैं कि प्रधान, मुरी, मृदंग, पादल, पडह, दमामा, कच्छभी, वीणा. विपल्ली, बल्लगी, घंटा के शब्द, नंदी वादित्र, वांसली, तृण का प्रवृत्तिक, तंती, तल, तृटिन, निर्घोष, गीत, वादित्र, नृत्य, नाटक, रस्सी पर नृत्य करनेवाले, मल्ल, मुष्टि युद्धगाले, मल्ल, हसानेवाले. कथा करनेवाले, शुभाशुभ कहनेवाले,बांसाग्र खेलनेवाले, चित्रपट,वनानेवाले, तृणाइ, 17 तुम्ही वीगी,करतान,और कारणा'दिमें बहुन प्रकार के मधुर सुस्वरसे गीत,गानेवाली स्त्री संबंधी, शब्द, कटि है।

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