Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
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________________ 1 217 aan दशमाङ्ग प्रश्नव्याकरण मूत्र-द्वितीय-संघरद र महुरसर गीयसुस्सराई कैची मेहला कलाग पत्तरक पहरेकपाय जालथ घंटिय खिखिणि रयणो रुजालय छु द्दय नेउर चलण नालिय, कणग नियल जालगं भूसणं सहाणि, लील चकम्ममाणाणुंदीरियाई तरूणि जहण हसिय भणिय कलह निभय मंजुलाई गुण वयणाणिय बहुणी महुरजण भासियाई अण्णेय एवमाइएसु सद्देसु मणण्ण भइए सुनतेसु समणेण सजियव्वं, नरजियव्वं नगिझियवं नमुझियन्वं, नविनिग्घायं __ आवज्जियन्वं, नलुभियध्वं, नतुसियवं, नहसियव्वं, नसइंच मइंच तत्थ कुज्जा // पुणरविय सोईदिएण सोच्चासदाई, अमणुण्णपावगाई किं ते अक्कोस परुस खिसण मेखला, नेपुर, घंटा, घुघरी: रत्नी, रुजिली, मु ,का, जाली, और शृंगार के शब्द, लीला से हलन चलन करसे उत्पन होवे वैसे शब्द, स्त्रियों साथ पुरुषों के इससे बोलने का, कलायुक्त, मंजुल, मधुरता के गुण से परिपूर्ण, बहुत लोकों के बोले दुए और इस प्रकार के अन्य अनेक मनोज्ञ शब्द में गृङ्ग होवे नह, मच्छित होवे नहीं, शब्द कर पात पावे नहीं, बाधित होवे नहीं, लोभावे नहीं, मुष्ट होवे नहीं, इसे नहीं, याद भी करे नहीं, बुद्धि की प्रेरणा करे नहीं. वैसे ही श्रोतेन्द्रिय से सुने हुवे खराब शब्द होते हैं. यथा, अकेश के वचन, कर्कश वन, निन्दा के वचन, अपमान के वचन तर्जना के वचन, निर्भत्सना के वचन, कोप वचन, बासित यवन, अक्कत्रचन, रौद्र रुदन के वचन, आइकारी, निष्टुरतावाले, दयाननक, किशपाल H+निष्पस्ग्रिह नायक पंचम अध्ययन व