Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari

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Page 214
________________ चरिमं संवद्दारं // 4 // जत्थ नकप्पइ गामागर नगर खेड कव्वड मंडव दोणमुह पट्टणा समगयंच किंचि अप्पं बहुंच अणूंच थूलंच तस थावस्काय दव्वं जायं, मणसावि परिघेतुण, // 5 // हिरण्ण, सुवण्ण खेत्त वत्थु नदासीदास भयग पेसहय गवेलगंवा नजाण जुग्ग सयासणाइ, नछत्तकं नकुंडिका नवाहण नपेहुण वीयण तालियंटका, गयाव आय तउय तंब सास कंस रयय जायरूव मणिमुत्तीधार पुडक संवर रूप वृक्ष अंतिप संबर द्वार का है // 4 // परिग्रह के त्यागी, ग्राम, आगर, खेड, कर्वट, मंडप, द्रोण मुख, पाटण, आश्रम इत्यादि स्थानों में अल्प मूल्यवाला अथवा बहुमूल्यवाला, सूक्ष्म अथवा स्थूल..! वस काया रूप, शंख, सीप युक्त फलादि, मनुष्य पशु मादि तथा स्थावर काया रूप धन धान्य धात आदि को ग्रहण करे नहीं // 5 // किस प्रकार के परिग्रह का त्याग करे सो कहते हैं चांदी, सुवर्ण, al क्षत्र, वत्थू. दास, दासी भृत्यक, प्रेषक, घोडा, हाथी, गौ, महिषादि, बकरा, छाली, स्थादि, यान, विमानादि पारण; पल्यंकादि शयन; सिंहासनादि आसन; इत्यादि परिग्रह साधु को रखना नहीं कल्पत है. वैसे / अन्य मतावलम्बियोंने धारन किये हुए छत्र कमंडल पगरखी मारपीछी पंखा तथा पत्र का पंखा यह भी नहीं कल्पता है. क्यों की इस से जैन लिंग से विपरीतता दीखाइ देती है. वैसे ही लोहा, ताम्बा 1सीसा, कांती, चांदी, सोना, चंद्र कांतादि मणि, मौ.क्तक, सीप, शंख, परवाल दांत सांमरा दिकका श्रृंगा अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनी श्रीअमोर.ख ऋषिजी प्रकाशक-राजाबहादुर बालामुखदवसहायजी ज्वालापमादी*.

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