Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari

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Page 220
________________ * अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिनी का धारिस्स भवइ, भायण भंडोवहिउवगरणं पडिग्गहो,पायबंधणं,पायकेसरिया,पायट्ठवणंच, पडलाइं तिण्णिवरयत्तागंच, गोच्छओ तिग्णिय पच्छागा रयहरणं चोलपट्टग मुहण गंतकमादियं, एपंपिय संजमस्स उवबहणट्टयाए, वायायव दंसमसग सीय ओसिण परिरक्खणट्टयाए उवगरणं, रागदोस रहियं परिहरियव्वं संजएणनिच्चं, पडिलेहण पप्फोडण पमज्जणाए, अहोयराओय अप्पमत्तेण होइ, : सययं / / शुद्ध आचार वाले स्थविर कल्पी जो साधु होते हैं वे उपकरण रखते हैं सो कहते हैं-१ पात्र 3 2 पात्र का बंधन झोली, 3 पात्र की प्रमार्जना करने का गोछा, 4 पात्र रखने को पाट पाटला 5 पात्र लपेटका लपेटा 6-8 तीन पात्र 9-11 तीन पात्रे के ढक्कन,१२ रजस्त्रण,१३ गोछा 15-16 तीन पछेवडी, 117 रजोहरण, 18 चोलपट्टा,१९ और 20 मुख वस्त्रि का. इत्यादि उपकरण संयम निर्वाह के लिये रखे. इन के सिवाय संयम क' पाउन काना कठिन है, अथवा वायु डांस,मच्छर शीत ऊष्णादि परिषहसे बचने के लिये रखे. इन उपक-नों में राग व द्वेश रहित सब दोनों का त्याग करता हुवा सदैव दोनों वक्त प्रति लेखना करे. अच्छी तरह दृष्टिसे देखे,यत्ना विना इधर उधर हलावे नहीं, जीव के शंका के स्थान पुंजता कर स्थापन करे दिन रात्री सदैव अप्रमादि होवे. उक्त भंडापकरणादि लेते हुवे अथशरखते हुवे भाजन भंडउपाधि * का उपकरणमें निर्ममत्त्व निप्परिग्रही रहे ,इस प्रकार के संयति स्त्री आदिकी संगति रहित तत्वकी रुचि वाले, * प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालापमादी *

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