Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
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________________ HIT 8. दशमाङ्ग-प्रश्नव्याकरण सूत्र-द्वितीय संवरद्वार नविवंदणाए नविमाणणाए, नविपूयणाए, नविवंदणमाणणपूयणाए, भिक्खगवेसिययव्वं नविहीलणाए, नविनिंदणार, नविगाहणाए, नविहीलणा निंदणा, गरहणा भिक्खंगवं सियव्वं नविभेसणाए, नवितजणाए, नवितालणाए, नविभेसण तजणाए, तालण भिक्खं. गोसयन्वं, नविगारवेणं,नविकुहणयाए,नविवणीयमयाए,नविगारवकुहण वणीमयाएभि, क्खंगवोसयन्वं, नविमित्तयाए, नविपत्थणाए, नविसेवणाए, नविमित्तय पत्थणसेवणाए और विद्या कला का अभ्यास कराकर भीक्षा की गवेषणा ग्रहण करे नहीं, वैसेही गृहस्थको स्तुतिकर, मान सन्मान देकर, पूजा सत्कार करके भी आहार की गवेषणा करे नहीं, वैसे ही गुण ग्राम, मान सन्मान व पूजा सत्कार सब एक साथ करके आहार की गवेषणा करे नहीं. हीलना करके, निन्दा करके, गर्हणा में करके ये तीनों अलग 2 करके वैसे ही ये तीनों कर्तव्य-हीलना, निन्दा और गईणा साथ करके भीक्षा की गवेषणा करे नहीं, डरबता कर, तर्जनी अंगुली से ताडना कर, और ही तर्जना (मार) देकर ये तीनों अलगर कर वैसे ही, भय, ताडना ब तर्जना साथ ही कर भिक्षा की गवेषणा करे नहीं, करुणा जनक शब्द बोलकर, "अहकार बतलाकर अथवा भिक्षाचर जैसे दीनता बताकर ये तीनों अलग करके अथवा तीनों साथ करके मिक्षा ग्रहण करे नहीं. मित्रपना से, प्रार्थना से अथवा सेवा भक्ति ये तीनों कॉम अलग 2 करके अथा तीनों काम साथ करके साधु भिक्षा गवेषे नहीं, परंतु इस प्रकार के दोषों टालकर साधु आहार की गवे-7 468- अहिंसा नामक प्रथम अध्ययन 48442