Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
View full book text
________________ तत्थेव गंवेसेजा,नयविसमं करेजा, नयनिवाय पायओ सुकंतं नडंसमंस केसुक्खभियव्वं, अग्गिधूमोय नकायवो, एवं संजमबहुले संवरबहुले संबुडबहुले, समाहिबहुले धीर कारण कासियंते सययं अज्झप्पज्झाणजुत्ते समिए एवं एगे चरिजधम्म एवं सिज्जा समिइ जोगेण भावितो भवति अंतरप्पा निच्चं अहिगरण करण करावण पात्रकम्म विरते दत्तमण्णुण्णाय उग्गहरुई // 9 // चउत्थं साहारण पिंडाय लभिसइ भातन्वं संजएण समियं नसायसूपाहिकं नक्खध नरवटुं एवोगयं नतुरियं नचवलं नसाहसं नयपरस्स " स्थान को विना आतापवाला बनावे नह:, विना आतापवाले स्थान से आतापवाला करे नहीं, दंश मच्छर वगैरा जीवों को क्षोभ उपजावे नहीं. अग्नि धूम्रादिक का प्रयोगकरे नहीं. इसप्रकार रहता हुवा संयप की वृद्धि करे, संवर को वृद्धि कर, अत्म संवर के वृद्धि करे, समचि की वृद्धि करे, धैर्यता से काया कर स्पर्श, स्वयं सूत्रादि के अध्ययन युक्त समितित धर्म का आचरन करे, इस प्रकार शैय्या समितियुक्त सदैव अधिकरण रहित उन के मालिक से दिया हुवा अपग्रह से ग्रहण करे // 9 // चौथी भावना-साधारन पिण्ड, बहुत साधु का एक साथ आहार आया हो, उसे भोगवता हुवा जिस प्रकार चोरी लगे नहीं उस प्रकार "शाक, सलाना, घृतादि अधिक लेने नहीं. जल्दी 2 भोगवे नहीं, खाने में शीघ्रता करे नहीं, शीर की चपलता करे नहीं, सहसात्कार करे नहीं, अच्छा आहार अकेला भोगवे नहीं, अन्य को दुःख होवे वैसे 4. अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी * प्रकाशक-राजाबहादुर लालासुखदेवमहायजी जालाप्रसादजी *