Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari

View full book text
Previous | Next

Page 192
________________ - minainian सव्ववित्त सुनिम्मिय सारं, सिद्धिविमाण अवंगयदारं // 2 // देव नरिंद नमंसिय पूर्य, सन्वजगुत्तम मंगलमग्गं // दुद्धरिसंगुन नायकमेकं, मोक्खपहस्स बडिंसग भूयं // 3 // 4 // जेण सुद्ध चरिएणं भवइ सुबभणो सुसमणो सुसाहु, सुइसी सुमुणी सुसंजए, सएवभिक्खु जोसुद्धं चरतिबंभचेरं, इमंच रइ राग दोस मोह पवड्डणकर किंमज्झपम यदोस, पसत्थसीलकरणं, अभंगणाणिय तेलमजणाणिय अभिक्खणं कांक्ख सीस कर चरणं वयण धोवण संवाहणं गायकम्म परिमद्दणाणलेवण चुण्णवास करनेवाला है, सब प्रकार की शारीरिक मानसिक पवित्र का सार भूत है, इस ब्रह्मचर्यने सिद्ध गति के और वैमानिक देव गति के द्वार खुल्ले कर दिये हैं // 2 // ब्रह्मचारी को देवता और मनुष्यों के राजा पूजते हैं. मब जगत् में उत्तम और मंगल करने का यह ही मोक्ष पंथ किप्ती भो देव दानव अथवा मानव से पराभव नहीं पासकता है यह एक अद्वितीय गुन है और सब गुन में यह ब्रह्मचर्य मुकूट समान है 3 // 4 // जिसने ब्रह्मचर्य व्रत का अच्छी तरह आचरन किया है उस को ही सब शुद्ध साधु कहते हैं. वही अच्छा है शिष्य है, वही मुनि है, वही संयति है, वही कर्म शत्रू विदारनेवाला भिक्षु है. जो ब्रह्मचारी होते हैं. वे राग द्वेष और मोह की वृद्धि करनेवाला अहंकार प्रमाद इत्यादि दोषों का त्याग कर प्रशस्त शील व्रत का 16 पालन करते हैं. घृत, मक्खन, तेलादिक शरीर को मर्दन करना, स्नान करना, वारंवार हाथ पांव मुख 4. अनुवादक-बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी * प्रकाशक-राजाबहादुरळाला मुखदेवसहायजी बालाप्रसादजी *

Loading...

Page Navigation
1 ... 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240