Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
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________________ म 1-संवरद्वार तीरियं किटियं अणुपालियं अणाए आराहियं भवति // एवं गायमुणिणा भगवया पण्णवियं परुवियं पसिद्धं सिद्ध सिद्धिवरसासणमिणं आघवियं सुदेसियं पसत्थं, तइयं संबरदार सम्मत्तं तिबेमि // ततिइयं संवरदारं ज्झयणं सम्मत्तं // 3 // * * कीर्ति कर, जिनाज्ञानुसार पाल कर आराधक होवे. ऐसा ज्ञात नंदन श्री महावीर भगवानने सामान्य से कहा है, विशेष प्रकार कहा है, परिषद में प्ररूपा है, संसार से मुक्त हो सिद्ध स्थान प्राप्त करने की हित शिक्षा दी हैं. अच्छा स्थान कहा है, अच्छा प्रशस्त उपदेशा है. यह तीसरा संवर द्वार हुवा.॥इति संवर द्वार का तीसरा अध्ययन संपूर्ण // 3 // 418दत्तव्रत नामक तृतीय अध्ययन . दशमाङ्ग प्रश्नव्याकरण . 4