Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
View full book text
________________ 157 दशमा-श्रव्याकरण सूब-द्वितीय संवरद्वार भासा, वयपियहोइ सोलसविह, एवं मरिहतमण्णुण्णायं समिक्खियं संजएणकालं 43 मियवतन्वं // 6 // इमंचभलियं पिसुण फरस कडुय चवल वषण परिरक्खणट्याए पाश्यणं भगवया सुकहियं अत्तहियं, पिवाभावियं, आगमेसिभई, सुद्धं नेयाउयं, अकुडिलं, अणुत्तरं, सम्वदुक्खपावा विउसमयं ॥७तस्स इमाई पंचभावणाओ पेशाची और अपभ्रंस, यह छ भाषा गवरूप और यह भाषा पञ्च रूप में,यो१२भेद माषाके हुए. और भी पचन सोका मेद का-एकवर द्विवचनअनेकपचन, ये तीनपचन, ४सी लिंग,५पुरुष लिंग और नमक लिंग,यह तीन लिंग,अतीत,८ अनागत बौर९ वर्तमान, ये तीन साल,१०मरत्यक्ष वाम??परोक्ष वचन१२अपनीत वचन, 13 उपनीत पचन, 14 अपनीत उपनीत बचन, १५उपनीत अपनीवपचन और१६बाध्यात्म बचन ये सोला पचन है. श्री अरिस भगवानने इन बचन बोलने की आशा दी और संघमा को इस का विचार करके : बोकने के अवसर पर बोलना // 3 // पापा बम, निन्दा कारक, काठम, करवा, चपलता युक्त और विना विचार का है. ऐसे पचन से मिल करना यह सिद्धांत में भगवानने अच्छा कहा है, इस मव आस्था को हितकारी है वैसे ही आगे के भव में भी आत्मा को हितकारी होता है सय पचन निदोष न्याय पसानेपामा कुटिलता रहित, प्रधाम सब दुःख कषय करने यासा॥७॥ पृषा से निवर्सने रूप दूसरे प्रत की पांच भाषना. उस प्रत की सभा के लिये कही है। - सस्व वचन नायक द्वितीय अध्ययन 4.91