Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
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________________ भीयंखुभिया अइति लहुयं भीओ अबितिजउमणस्सो, भीमो भूएहि विधेप्पेजा, भीओ अन्नंपिहुंभंसिज्जा,भीओ तवसंजमंपिहमुएज्जा भीतीय भारंननेन्छरिज्जा, सप्पुरिसीनसेवियं च मग्गं भीतो नसमस्यो अणुचरियं तम्हान भीइयव्वं भयस्सवा, वाहिस्सवा,रोगस्सवा जराएवा मन्चुस्सवा अन्नस्सव एवमाइयस्स एवं धेजाणि भाविओभवइ अंतरप्पा संजय कर चरण नयणवयणो सूरो सञ्चजव संपन्नो // 12 // पंचमग हासं नसेवियन्वं आलयाई असंतगाई जति हासइता परपरिभव कारणंच हासं, परपरिवायाप्पियंच बना हुवा झूठ बोलता है. अनेक प्रकार के मय जाते हैं. जो मय करता है वह सत्य रहित है. इस से मत्स को भय होवे इस में क्या संशय भय भीत मनुष्य भूत प्रेतादि मे डरता है और अन्य अनेक को डराता है. भय भीत मनुष्य प संयम से डरता है, ऐसा मनुष्य सत्पुरुष का मार्ग सेवन नहीं कर * सकता है. सत्पुरुष के मार्ग में न चल सकता है. इस से मय मीत बनना नहीं. व्याधि से रोग से मृत्यु इत्यादि का भय कर नहीं. भय आनेपर धैर्यता धारन करे, धैर्यता में भाषित अंतरात्मा हाथ, पांच, आंख, व मुख में शूरवीर और सत्य ब ऋजुता को प्राप्त होता है // 12 // अब पांचवी भावना कहते है. हास्य का सेवन करना नहीं. क्यों कि हास्य करनेवाला झूठ बोलता है. हास्य करनेवाले परंपग से भव का | संचय करते हैं, हास्य विपत्ति में द.लता है, दुःख देता है, हास्य 2 में भेद कराता है, चारमादि दशमान प्रश्नपाकरण सम-द्वितीय-संबरद्वार सत्य पचन नायक द्वितीय अध्ययन Hit /