Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
View full book text
________________ साहम्मिय तवरसी कुल गण संघ बेहयद्रय निजरट्टी वेयावर्ष अणिस्सियं दसविय बहुविहं करेति, नय मचियत्तस्सघरं पचिस्सइ, नय अचियत्तस्स भत्तपाणं गेण्हइ, नय अघियत्तस्स सेवइ पीढ फलग सेजा संथार वत्थ पाय कंबल भंडग रयोहरण निसेज चोलपट मुहपोत्तिय पाय पुग्छणा भायण भंडोवहि उवगरणं नयपरपरिवायं परस्संपति नयाविदोसेपरस्सगिण्हंति, परिववएसेवि नीिच दुख, ग्लानि, वृद्ध, वपस्त्री, प्रतिक, नापार्य, उपाध्याय, शिष्य, स्वधर्षी, सपस्वी, गुरुमाइ, साधु साध्वी, पापक और श्राविकाका चतुर्विध संघ, हानी इत्यादि की वैयावृत्य निर्जरा के लिये करे. Eऐसी यावृत्य के मुख्यता से दष भेद को परंतु प्रौणता से अनेक भेद हैं. इसे करनेवाला तीसरे संवर का आरारक होता है. और भी बदन व्रत क आराधक कहते हैं. बमतीतकारी गृह में प्रवेश करे। नहीं, अप्रतीतकारी आहार पानी ग्रहण करेन, अप्रतीतकारी पाटपाटला स्थानक, विछोना, बन, पात्र, . कमाल, दंड, पाद पुंछन, भाषन वगैरण ग्रहणकरे, नहीं बन्यके दोष ग्रहणकरे नही, रोगी ग्लानि के नाम से आहार लाकर आप भोगवे न किसीने दान पुण्यादि किया ये उसे विपरीत परिणयवे नहीं, किसी के 1..धर्म का किचिन्मान भी ना करे नीं, किस के दान अथवा सुकृत के सका गोपन करे नहीं, भक्त 1 पानादि देकर बैय्यावृत्य कराने की इच्छा करे नहीं, बाहार पानी दिये पीछे यदि भय्यावृत्प करे नहीं तो अवादक-बालबमचारी मुनि श्री अपोलक ऋषिजी / *बाधक-राजाबहादुर लामा मुखदेवसहायनी ज्वालाप्रसादमी