Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
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________________ का वा भावणाओ॥ 7 // १पढमरस वयस्स हुँति पाणाइवाय वरमेणं परिरक्खणट्टयाए पढमठाणं गमणगुणजोग जुंजण जुगंतरणिवाइयाए दिट्ठीए इरियव्वं कीड पयंग तस थावरदया वरेण,निच्चं पुप्फ फल तय पवाल कंद मूल दगमट्टिय बीय हरिय परिवजएणं सम्म;एवंखलु सव्वपाणा महीलियव्वाननिंदियव्व नगरहियव्वा नहिंसियव्या निच्छिदियव्वा,नभिदियव्वा, नवहेयव्वा नभय दुखंच किंचिलब्भापावेओ, जो एवं इरियासमिइ जोगेण भाविओ भवइ अंतरप्पा असबल मसांकलिट्ठ निव्वाणचरित्त भावनाए अहिंसए संजएसुसाहु॥८॥बिइयंच युक्त आगे एक युग गाडी के धूसर प्रमाण दृष्टि से ईर्यासमिति सहित देखता हुवा, कीडे पतङ्ग त्रम स्थावर प्राणियों पर दया रखता हुआ, सदैव पुष्प फल त्वचा, प्रवाल, कंद, मूल, पानी, मिट्टि, बीज, हरी इत्यादि से पचता हुवा प्रवते. यों निश्चय सब माणी भूतको हीलने वाला होवे नहीं, निंदने वाला होवे नहीं, गर्हणा करने वाला होवे नहीं, हिंसा करने वाला होवे नहीं, चर्म छेद करने वाला होवे नहीं, किंचिन्मात्र दुःख देने वाला होवे नहीं, परंतु ईर्यासमिति के योग से अपनी आत्मा को भावता हुवा विचरने वाला हे वे. ऐसा पाप कार्य रहित निर्मल, संक्लिष्ट परिणाम रहित,अखण्ड चारित्रकी भावना युक्त अहिंसारूप 11 संयमी ही सुसाधु कहाते हैं // 8 // दूसरी भाषना-मन से पापकारी, अधर्मकारी, दारुण,नृशंप, अधबंधन और दशपाङ्ग-प्रश्नव्याकरण मूत्र द्वितीय-संवरद्वार 42im अहिया नामक प्रथम अध्ययन 448 - -