Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
View full book text
________________ र tar द्वितीय-सबरद्वार दशमाङ्ग-प्रश्नव्याकरण मूत्र जोगेणं भविओ भवइ अंतरप्पा असबल मसंकिलिटुं निवण चरित्त भावणाए अहिंसए संजए सुसहु // 11 // 5 पंचमं पंढ फलग सिज्जा संथारगं वत्थ पत्त कंबल दंडग ग्यहरण चोलपट्टग मुहपोतिय पायपच्छणादिएयपि संजमस्स उवबूह 149 है णट्रयाए, वाया तव दममसंग सीय परिरक्खणट्ठयाए, उवगरणं राग दोस रहियं परिहरियव्वं संजणं णच पडिलेहण पप्फोडण पम्मजणाए अहोयराओय अप्पमत्तेण होइ सययं निक्खितखव्वच गिाण्यवंच भायणं, भंडोवहि उवगरणं, एवं __ आयाण भंडनिक्खेवणा समिइ जोगेण भाविउ भवइ अंतरप्पा असबल मसकिलिटुं वैपे ही क्षुधा वेदनीय का उपशम के लिये, संयम का भार का निर्वाह के लिये, प्राण धारण करने के लिये में आहार भोगव. इस प्रकार आहार समिति युक्त एक अंतरात्मा को भावता हुवा पाप रहित निर्मल क्लेश परिणाम रहित असा संयमी ही सुसाए के हाते हैं // 1 // पांचवी भावना- पीढ फलक, शैय्या, संथारा व, पात्र, कम्बल, दंड, रजोहरण, चोलपट्टा, मुख वस्त्रिका, पाद पुंछन, इत्यादि उपकरण संयम निर्वाह के. लिये रखत हैं. उन उपकरणों में राग द्वेष रहित उपयोग में लेवे. यत्ता पूर्वक प्रतिलेखना, प्रमार्जना करे. य ना पूर्वक ग्रहण करे, रखे, इस तरह भंडपकरण उपधि वस्त्र दि रखता आदानभंडभत्त निक्षेपना / सीति रूप भावना से अंरात्म को भ वता हुआ पाप तिल क्ले शन परिण मरहित निर्माण चरित्र / - अहिंसा नापक प्रथम अध्ययन