Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
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________________ a 14... मूलकम्मे आहेवण अभिगमदोसहि पोग चोरिय परदारगमणं बहुपावकाम करणं. . उक्खंधे गामघाइताओ, वणदहण, तलाग भेयणाणि, बुद्धि विसासणाणि, वसीकरण माइयाइ, भेय मरणं किलेस दोम अणणाणि भाव बहु संकिलेटु मलिणाणि भूयघाओ वघाइयाई सच्चणिविताई हिंसकाइ वयणाई उदाहरति : पुट्ठावा अपुढावा परतात्त बावडाय असमिक्खितं भासिणो उवदिसति सहसा उद्या गोणा गवया दमंतु परिणयवया, अस्सा हत्थीगवेलग कुक्कडाय किजंतु किणा वेधय खदान खोदने का कहे, माली को विविध प्रकार के पुष्प फल तोडने का कहे, भिल्लादिक को बहुत प्रकार का बधु नीकालने का कहे, घट्टी आदि यंत्र से पीलना, विषम शस्त्र से मारना अथवा स्तंभनादि करना. नगर क्षोभ करना, अभियोग वशीकरण करना, भूतादि दपनका मंत्र कराना, औषधि प्रयोग कराना,परदार, सेवन करना, कटक चढाना, ग्रामादिकं की घात करना; उनमें अग्नि लगाना, तलावकी पाल फोडना, अन्यकी , बुद्धि विकल बनाना,उच्चाटनादि करना, स्त्री पुरुषादिक को अपने वैशमें करना. इत्यादि दुष्ट अध्यवसाय संक्लिष्ट से दष्ट परिणामीको मृषा वादीही जानना इस सिव.य औरभी जीवों की बात करनेवाली भाषा सत्याने पर भी मृपा 17की जाती है. और भी पुछी हुई अथवा बिना पुछी हुइ और विना विचारसे बोलाइ हुई भाषा पृषा कही जाते .ही / क-बाउनमचारी मुनि श्री बमोट अपिजी * प्रकाशक-राजाबहादुर लालामुखदेवमहायजीपालाप्रसादजी /