Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
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________________ - 127 कामगुण, अण्हकाय इंदिय लेसाओ सयणसंपयोगा, सचिताचित्तमीसगाई दव्वाई अणंतकाई इच्छंति परिघेतु, सदेव मणुया सुरंम्मिलोए लोभ परिग्गहो, जिणवरेहि भणिओ, नत्थि एरिसोपासो पडिबंधो, अत्थि सव्वज्जीवाणं सव्वलोए, परलोयमियनद्रा तमपविट्ठा, महया मोहे मोहियमती, तिमिसंधकारे // तस थावर सुहुम बायरेसु पारग्रहवंत को माया शल्य, दान शल्य, मिथ्या दर्शन शल्य, ऋद्धि का गर्व, रस का गर्व, और साता का गर्व, क्रोधादि चार कपाय, आहार संज्ञा, भय संज्ञा, मैथुन संज्ञा, और परिग्रह संज्ञा, शब्द रूप, गंध रम और पर्श ये पांच कामगुन, प्राणाति पानादि पांच आश्रव, पांचो इन्द्रिय का अग्रिह, कृष्ण दि अप्रशस्त लेश्या, स्वान पुत्र कलत्रादिक का संप्रयोग, और सचित्त अचित पिश्र ये तीनों प्रकार के 2 द्रव्य का योग अवश्यमेव होता है. इन की इच्छा करते रहते हैं. 'श्री जिनेश्वर-भगवानने कहा है। कि देवता, मनुष्य, तिच, स्वर्ग लोक और असुर लोक में लोभ समान दूपरी कोइ पाश नहीं है. ऐमा अन्य प्रतिबंध नहीं है. यह परिग्रह-इस लोक व परलोक में सब जीवों को नष्ट भ्रष्ट बनाने वाला है. 'सद्गति का नाश करने वाला है. अन्नान रूप अंधकार में प्रवेश कराने वाला है. सित्तर क्रोडाकोड सागरोपम की 12 स्थिति वाला मोहनीय कर्म उत्पन्न कराने वाला है. तिमिसुगुफा के समान हृदय गुफा को अंधकार अच्छा प्रदित करने वाला है. इस स्थावर, सूक्ष्म बादर, पर्याप्त और अपर्याप्त वगैरह जीवों को संसार 4Hदशमाङ्ग प्रश्नव्याकरण सत्र-प्रयम-आश्रवद्वार 4H-NR परिग्रह नामक पंचम अध्ययन 186++