Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
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________________ नडिजए संचिति मंदबुद्धी।६। परिगाहस्सैक्यअट्ठाए करेंति पाणवह करण अलिय नियंडि सातिसंपओग, परदव्व अभिज्झास परदारगमण सेवणाए, आयासबिसूरणं, कलह, भंडण, वेराणिय, अवमाण, विमाणगाओ, इच्छ महिच्छ पिवासा सत्तत तसिया, तण्ह- . गेहि लोघत्था, अत्ताणा अणिग्गहिया करंति // 7 // कोह माण माया लोभे अकित्तणिजे, परिग्गह चेव होति णियमा, सल्ला दंडाय गारवाय, कसायांय सण्णाय, बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलख जापनी करते हैं, ये परिग्रह में लुब्ध बने रहते हैं. // 6 // अब वे जीव परिग्रह संचय के लिये क्या क्या करते हैं सो कहते हैं. धन के लिये पृथिव्यादि छ काया का बंध करने हैं. असत्य बोलते हैं, अच्छी कस्तु में बुरी वस्तु मीलाकर देते हैं, परस्त्री गमन करते हैं. उस को अपने वश में करके उस के स्वामी बनते हैं. शरीर का नाश करते हैं. क्षुधा तृपाद खेद से खेदित होते हैं, नीच जैसे वचन बोलते हैं, क्लेश करते हैं. अन्य का अपमान करते हैं, चिंता ग्रस्त रहते हैं. अथवा बहुत जनों का मन दुःखाते हैं, तृष्णा वाले पुरुषों को इच्छित वस्तु की प्राप्ति होने पर संतोष नहीं होता है, चक्कवर्ती की ऋद्धि भी मील जारे तथापि संतोष नहीं होता है, अत्यंत दुःखि होने पर तृष्णाबाले आत्मा का निग्रह नहीं करते हैं // 7 // यह परिग्रह क्रोध मान माया और लोभ की वृद्धि करने वाला है. साधु पुरुषों को निन्दनीय है, **-मकामाक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालामादजी *