Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
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________________ 44 दशमाङ्ग-प्रश्नव्याकरण सूत्र प्रथम-अ'श्रबद्वार HA माढिगुवरडचम्मगुडिया, अविद्वजालिका, कवयः कंचुइया, उर मिर मुहबंध कंटतोरणा माइय वरफलग रचिय पहकर सरभसखरचावकर करत्थिया सुनिमिय सर बरिस चरकण कमुयंत घणचंडवंगधारा निवाय, मग्गे अणेगधणुमंडलम्ग संधित उच्छलय सत्तिकणग वामकरगहिय, खेडग निम्मल निविद, खग्ग पहरंत, कोत तोमर, चक्क गया परसु मुसल,लंगल सूल लउड भिंडिमाल, सव्वल पट्टिस चम्मेट दुघणमुट्ठिय मोग्गरवरफालह, जंत पत्थर, दुहण तोण कुवेणा पीढाकलिए ईली पहरण मिली योग वंश उसपर जय पालना दुष्कर होवे तो सेना को छछेडता हुवा और अन्य के प्रार्डवर का # अच्छादन करता हुवा सन्मुख आकर उस के धन का हरन करे वसा, वैसे ही मेना के अग्र भागमा रहने वाला, शस्त्र के मस्तक की और लक्ष्य रखने वाला, स्वयपेवः अन्यदल में प्रवेश करने वाला भी चौरी करने वाला कहाता है. कवच बन्ध, बख्तर पहिना हुवा. शैशीला. राजचिन्ह मस्तक पर धाग्न किया हुवा, आयुध शस्त्रों ग्रहण किया हुवा. कवच गुंडाला हुवा अर्थात् चमडे के मजबूत बक्तर से हृष्ट. पुष्ट शरीर आच्छादन किया हुवा, उपर में लोहपये जाली पहिनी हुइ..यों कवच की. कंचुकी युक्त, हृदय स्तक पेट मुख वगैरह बंधा हुवा, गरदन में तीरका भाथा बंधा हुवा, शस्त्र से अपने शरीर को बनाया हुवा, 11/बहुत पदाति के सभारंभ वाला, हाथ में धनुष्य धारन करने वाला, मेघ की वर्षा समान बाण की वर्षा अदत्त नामक तृतीय अध्ययन sin