Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
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________________ - 1 9 अर्थ अमिण निविनया, छिण्णहत्थपायाय पमुच्चंति जावजीवबंधणाय कीरंति, केइपरदव्वहरणलुहाकारग्गल नियल जुयल रुडा चारगायहत मारा सयण विप्पमुक्का, मित्तजण निरक्किया, निरासा बहुजण धिक्कार सहलजा विया अलज्जा अणुबह खुहा परद्धसीउण्हे तरह वेयण दुहट घटिय विवन्नमुह विच्छविया, विहल मइल दुब्बला किलंता खारता वाहियाय, आमाभिभू यगत्ता, परूढ नहकेस मंसुरोमाछगमुत्तगि णियगमिखुत्ता, तत्थेवमया अकामका जिव्हा का छेदन करते है, कितनेक को देश पार करते हैं, कितनेक को जीवन पर्यंत बंदीखाने में डालते हैं. . जो धन हरण में लुब्ध होते हैं उन की ऐमा स्थिति होती है. और भी चोरों के दुःख का वर्णन करते वह वहां निवड बंधन से बंधा हुवा, रस में से रुंधा हुवा, भाख सी में डाला हुवा, उस का 13 द्रव्य हरन, किया हुना, सब स्वजन से त्यनाया हुआ, सर्वथा निराश बना हुवा. वा जन से तिरस्कार पाया हुवा, नीन वरन से तना पाया हुवा, लज्जा रहित बना हुवा, सदैव क्षुधा, तृषा रहित, ऊष्णादि दुःख से दग्ध बना हुवा, विकारवंत मुखवा , गात्र वस्त्र तथा दुर्बल शरीर से क्लेशित बना हुवा, रक्षकोंसे वाम पाया हुवा, व्याधि से घबराया हुआ, उस का शरीर उस हो कष्ट रूप से लगा हुवा, वृद्धि पाये हुए नख, 17 रोम, दादी, मूछ, मस्त , कक्षादिक के बालवाला, म. मूवादि अशुचि स्थान में खूचा हुवा, अच्छिा है। शमाङ्ग प्रश्नव्याकरण सूत्र-मयम-आश्रवद्व र अदत्त नामक तय अध्ययन 4141 Un