Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
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________________ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी , अर्थ - जोइस विमाणवासि // मणयगणा जलयर थलयर खहचसय, मोहपडिवद्याचित्ता अवतण्ह, काम भोगतिसियाण, तण्हाए बलवतीए, महंतीए समभिभूया, गढिताय, अतिमच्छिताय, अबभ उसण्ण तामसेण भावेण अणमुक्का, देसण चरित्त मोहस्स पंजरं, पिवकरांत, अण्णमण्णं सेवमाणा भजो असरसर तिरिय मणुय भोगरति, * विहार सपओत्ताय // 3 // चक्कवट्टी सूर नरपति, सक्कया सुरवरव्व देवले गे॥ भरहतग नगर निगम जणवय पुरवरं दोण्णमुह खेड कब्बड मंडव पट्टण संवाह दव, चंद्रश्नदिक पांच ज्योतिषी, तथा वैमानिक देव मनुष्य का समुदाय, जलचर, स्थलचर, खेचर, तिर्यंच इत्यादि. काम भोग के पिपासु, महातृष्णा वाले, काम भोग से पराभव पाये हुए, गद्ध बम हुए, अतिमूर्छितबने हुए. अबह्मरूप कीचड में खुते हुए. अज्ञान भाव से मुक्त नहीं हुए है। दर्शन मोहनीय और चारित्र मे हनीय के उदयरूप पिंजर में फसे हुए जीव अपनी आत्मा परबश में डालकर स्त्री पुरुष व नपुंसक मीलकर अनेक प्रकार की कुचेष्टा करते हैं. और असुर कुमार तिर्यंची मनुष्य की विचित्र प्रकार की क्रीडा में संयुक्त बनते हैं // 3 // अव भोगी पुरुषों का कथन करते हैं. गाजाओंके पूज्यनीय. देवता जैसे सुख विलास वाले, भरतादि क्षेत्रके ग्राम, नगर, निगम, जनपद, प्रधानपुर द्रोणमुख, खेड, कर्वट, मंडप, वाण संवाह, इत्यादि सहित, परचक्री से सदैव निर्भय, निश्चलित *प्रकाशक-राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *