Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
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________________ 112 New नगयोवृणमू सताओ, सिंगारागार चारवंसा, सुंदर थण जहण वयण कर चरण णयणा लावारूव जोवण गुणोववेया, गंदणवण विवर चारिणीओ उच्चअत्थराओ,उत्थरकुरुमाणसत्थराओ, अच्छेरगपच्छणिज्जाओ, तिणिपलि. आवमाई परमाओपालइत्ता, ताओविउवगमंति मरणधम्मं, अतित्ता काम णं // 8 // मेहुणसन्नपगिडाय, मोहभग्यिा. सत्थेहि हणंति एक्कमेकविसय विउदीरएहि. अवरेपरदारेहिं हिंसति विमुणिया धणनास,सयणविप्पणासंचपाउणंति, परस्सदाराओ जे आंव रया,मेहुण सण्णसंपगिहाय,मोहभरिया, अस्साहस्थीगशय महिसा मिग्गाय मारेंति एक्क asles रहित और दुष्ट वर्ण, व्यघि और दोर्भाग्य रहित हैं, ऊंनाइ में पुरुष से कुच्छ कम है. लावण्यत रूप यौवन दि विविध गुन की धारक हैं. नंदनवन में विचरने वाला अप्स। ममान अर्थात् उत्तरकुरु ष, रूप वन में अनुष्यनी रूप अप्मरा है, प्रेक्षक को आश्चर्य करनेवाली है. उत्कृष्ट तीन पल्यापम की आयुष्य हैं. इतना होने पर वे भी काम भोग में अतृप्त बनकर मृत्यु धर्म को प्राप्त हुइ हैं // 8 // मैथुन संज्ञा में गृद्ध जीव अज्ञान में पूर्ण बने हुए शस्त्र से एकेकी घात पात हैं, विष देकर मारते हैं. परदारा में रमण करनाले की घात उस स्त्री का पति करता है. धन का नाश होता है, स्वजन का नाश होता है. पैथुन 17 में गृद्ध और माह कर्म से परिपूर्ण बने हुए घोडे, हाथी बैल, महिष, मृग वगैरह परस्पर सड मरते हैं 4. अनुवादक-पालकमचारी मुनि श्री अयोलक ऋषिजी *काशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी . , /