Book Title: Prashna Vyakaran Sutra
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahadur Lala Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Jouhari
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________________ मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + 4- अनुवादक-बार ब्रह्मचारी थिमियं मेयणीय, एगच्छत्तं ससागरं भुजिउण वसुहं, अपरिमिय मणंत तण्ह मणुवाय महिन्छसार निश्यमूलो, लोभकाल कसाय महक्खंधो, चिंतासय निचिय विपुलसालो गारवविगल्लियग्गविडवो, नियडितयापत्तपल्लवधरो, पुप्फ फल जस्स कामभोगो आयासावसूरणा, कलहपक पियग्गसिहरो, नरवइसंपूजितो, बहुजणस्सहिययदईओ, इमस्स मोक्खवर मोत्तिमग्गस्स फलिहभूतो, // 1 // चरिमं अहम्मदारं तस्सयं वड, कर्वेट, मंडप, आश्रय, पाटण, इत्याद सहित पृथ्वी वगैरह जिन को होवे, पृथ्वी में एक ही राजा होवे. अपरिमित लक्ष्मी का भोक्ता होचे, ऐसा अनंत, पाप द्रव्य की रक्षा और अप्राप्त द्रव्य की वाच्छा से अनुपत बने तृष्णा वाले परिग्रह कोटी भारभूत मानते हैं, ऐसा नरक गति में मूल भूत यह परिग्रह वृक्ष है. इस को लोभ क्लेश कषाय रूप स्कंध है, प्राप्त द्रव्य की रक्षा में चिंता करने रूप शाखा है, ऋद्धि गर्व, रस गर्व, साता गर्व तीनों गर्वरूपं विस्तारवंत पातशाखा है. माया करना सो स्वचा है } पांचों इन्द्रिय संबंधी 23 विषय के 240 विकार, काम भोग, रूप पत्र, पल्लव पुष्प वगैरह हैं. शारीरिक दुःख, मानसिक दुःख, क्लेश, अन्य को भंडन करना यह कंपायमान शिखर है, ऐसा महा परिग्रह रूप वृक्ष बडे नरपतियों को पूज्यनीय है, बहुत मनुष्यों के हृदय को वल्लभकारी है, यह परिग्रह रूप वृक्ष प्रधान मोक्ष पथ में विघ्न करनेवाला है अर्गल सहित कपाट समान है // 1 // इस चरिम अधर्म द्वार के *भकाशक-राजाबहादुरळाला खदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*